एक अलाह के मैं कुरबानी
ek alaah ke main kurbaanii
एक अलाह के मैं कुरबानी।
दिल ओझल मेरा दिलजानी॥
तू मेरा साहब मैं तेरा बंदा।
तू मेरि सभी हवस पहिचंदा॥
चार बार तुम कहँ सिर नावौं।
जानि जरूर तुम्हैं गोहरावौं॥
तुमहिं हमारे मक्का मदीना।
तुमहिं रोजा रिजिक रोजीना॥
तुमहिं कोरान खतम खतमाना।
तुम तसबी अरु दीन इमाना॥
मैं आसिक महबूब तू दरसा।
बेगर तोहि जहान जहर सा॥
देहु दीदार दिलासा एही।
नातर जाव बिनसि बरु देंही॥
कादिर तुमहिं कदर की जाना।
मैं हिंदू किधौं मुसलमाना॥
धरनीदास खड़े दरवाजा।
सब के तुमहि गरीब निवाजा॥
- पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 18)
- रचनाकार : धरनीदास
- प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
- संस्करण : 1931
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