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अवचक आई गैला पिया कै सनेसवा

awchak i gaila piya kai saneswa

धरनीदास

धरनीदास

अवचक आई गैला पिया कै सनेसवा

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    अवचक आई गैला पिया कै सनेसवा, ताखन उठलिउँ जागिरे।

    राम-राम करि घर से निकसलिउँ, जे जहँ से तहँ त्यागि रे॥

    सत कै सिँघोरा कर पर मोरा, प्रेम पटंबर पागि रे।

    बाजन लागु चपल चौघरिया, चित्त चतुरता भागि रे॥

    पूर परी कुरखेतहिँ चढ़लिउँ, जन परिजन से बागि रे।

    करम भरम कर चिता सजावल, ब्रह्म अगिन तेहिं लागि रे॥

    धरनी धनि तहँ भक्ति भाँवरी, चित अनुभै अनुरागि रे।

    अबकी गवना बहुरि नहिं अवना, बोलहु राम सुभागि रे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 28)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

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