धवणा धूजै पाहण पूजै
dhawna dhujai pahan pujai
धवणा धूजै पाहण पूजै, वेफरमाई ख़ुदाई।
गुरू चेलै कै पाअ लागै, देखो! लोग अन्याई॥
काठी कणजो रूपा रैहण, कापड़ माँह छिपाई।
नीचा पड़-पड़ तानै धोकै, धीरो रे हरिआई॥
ब्राह्मण नाऊं लादण रूड़ा, बूता नाऊं कुता।
बै अपहानै पोह बतावैं, बैर जगावैं सुता॥
भूत परेती जाखा खाणी यह पाखंड पखाणो।
बल-बल कूकस कांय दलीजै, जामै कणु न दाणूं॥
तैल लीयो खल चोपै जोगी, खल पण सूंघी बिकाणो।
कालर बीज न बीज प्राणी थल सिर नकर निवांणो॥
नीर गये छीलर कांय सोधो, रीता रह्या इवाणी।
भवंता ते फिरंता-फिरंता ते भवंता, मड़े मसाणे तड़े तड़ंगे॥
पड़े पखांणे ह्यांतो सिद्ध न कोई निज पोह खोज पिराणी।
जे नर दावो छोड्यो मेर चुकाई, राह तेतीसां की जाणी॥
जो अपनी गर्दन को हिलाकर भक्ति का दिखावा करता है और पत्थर की मूर्ति को पूजता है, वह नहीं जानता कि ऐसा करना ख़ुदा का फरमान नहीं है। देखो! संसार के अज्ञानी स्त्री-पुरुष कैसे अन्यायी हैं जो पत्थर को पूजते हैं। पत्थर को पूजना एक प्रकार से गुरु का अपने शिष्य के पैरों पड़ने जैसा ही है। जो मूर्तियाँ लकड़ी, लाख तथा चाँदी की बनी होती है, जिनको लोग नाना वस्त्राभूषणों से ढककर रखते हैं, मूर्तियों को लोग ज़मीन पर पड़कर दंडवत प्रणाम करते हैं, उनको लगता है हरि आने ही वाले हैं, धैर्य रखो। अर्थात् ऐसे कार्य से परमात्मा कभी प्राप्त नहीं हो सकते। धर्मरहित और ज्ञानविहीन ब्राह्मण से गधा अच्छा है तथा बुत से कुत्ता। कुत्ते भौंककर मार्ग बताते हैं पर अज्ञानी ब्राह्मण आपस के पुराने बैर-भाव को जगा देता है। भूत-प्रेतादि को पूजना झख मारने जैसा है, यह प्रमाणभूत पाखंड है। उस भूसे का बार-बार क्यों मर्दन किया जाए जिसमें अन्नकण नहीं हैं? तिलों में से तेल निकाल लेने के बाद उसकी भूसी जानवरों के लिए ही रह जाती है और वह खली सस्ते दामों पर बिकती है। हे प्राणी! ऊसर भूमि में बीज मत डालो और न रेतीली भूमि में तालाब ही बनाओ, ऐसा करना असफल प्रयास है। जो तालाब पानी से रिक्त हो चुका है उसको फिर पानी के लिए ढूँढ़ना? ऐसा करने वाले रिक्त ही रहे। जो साधु—वेशधारी इस पृथ्वी पर व्यर्थ में भटकते रहते हैं और नंग-धड़ंग श्मशानों में पड़े रहते हैं और व्यर्थ में पाषाणों को पूजते हैं उनमें कोई सिद्ध पुरुष नहीं है। हे प्राणी! तू उनके भ्रम में न पड़कर अपने असली मार्ग की तलाश कर। जिस मनुष्य ने द्वैभाव को छोड़ दिया, इस संसार से अपना ममत्व चुका दिया, वह देव गति को प्राप्त होगा।
- पुस्तक : जाम्भोजी की वाणी (पृष्ठ 266)
- रचनाकार : जाम्भोजी
- प्रकाशन : Vikas Prakashan
- संस्करण : 2001
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