समुझि बूझि रन चढ़ना साधो
samujhi bujhi ran chaDhna sadho
समुझि-बूझि रन चढ़ना साधो, खूब लड़ाई लड़ना है।
दम-दम कदम पडै आगे को, पीछे नाहिं पछड़ना है।
तिल-तिल घाव लगे जो तन में, खेत सेती क्या टरना है॥
सबद खैंचि समसेर जेर कर, उन पाँचों को धरना है।
काम-क्रोध-मद-लोभ कैद कर, मन कर ठौरै मरना है॥
खड़ा रहै मैदान के ऊपर, उनकी चोट सँभरना है।
आठ पहर असवार सुरत पर, गाफिल नाहीं पड़ना है॥
सीस दिहा साहिब के ऊपर, किसकी डेर अब डेरना है।
पलटू बाना रुंड के ऊपर, अब क्या दूसर करना है॥
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 419)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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