बँगला खूब बना है ज़ोर
bangla khoob bana hai zor
बँगला खूब बना है ज़ोर, जामें सूरज चंद करोड़॥
या बँगला के द्वादस दर हैं मध्य पवन परवाना।
नाम भजे तो जुग-जुग तेरा नातर होत बिराना॥
पाँच तत्त और तीन गुनन का बँगला अधिक बनाया।
या बँगले में साहब बैठा सतगुरु भेद लखाया॥
रोम-रोम तारागन दमकै कली-कली दर चंदा।
सूरजमुखी सबत्तर साजै बाँधा परमानंदा॥
बँगले में बैकुंठ बनाया सप्त पुरी सैलाना।
भुवन चतुरदस लोक बिराजैं कारीगर क़ुरबाना॥
या बँगले में जाप होत है ररंकार धुन सेसा।
सुर नर मुनि जन माला फेरैं ब्रह्मा बिस्नु महेसा॥
गन गंधर्प गलतान ध्यान में तेंतिस कोट बिराजैं।
सुर निरंती बीना सुनिये अनहद नादु बाजै॥
इला पिंगला पेंग परी है सुखमन झूल झुलंती।
सुरत सनेही सबद सुनत है राग होत निरतंती॥
पाँच पचीसो मगन भये हैं देखो परमानंदा।
मन चंचल निहचल भया हंसा मिलै परम सुख सिंघा॥
नभ की डोर गगन सूँ बाँधै तो इहां रहने पावै।
दसो दिसा सूँ पवन झकोरै काहे दोस लगावै॥
आठो बखत अल्हैया बाजै होता सबद टंकोरा।
ग़रीबदास यूं ध्यान लगावै जैसे चंद चकोरा॥
- पुस्तक : हिंदी संतकाव्य-संग्रह (पृष्ठ 320)
- संपादक : गणेशप्रसाद द्विवेदी
- रचनाकार : ग़रीबदास
- प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडेमी
- संस्करण : 1952
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