भजन बिना, मिथ्या जनम गमावे
bhajan bina, mithya janam gamawe
भजन बिना, मिथ्या जनम गमावे।
आ संसार धुंआ जैसा धवला, हाथ कछु नहीं आवे॥
मृगतृष्णा वे सरोवर भरीया, दूर से नीर दरसावे।
नजीक गये जब, प्यास न जावे, उलटा प्रान गमावे॥
जैसे श्रवान है हाड कूँ चूसता, जीभ्या इंद्री कूँ वडाने।
आपको लोही आप कूँ रवावे, मूरख मन नहीं पावे॥
सुपने में निरधन धन पायो, जाग्यो तो तभी न जावे।
'गवरी' कहे भज ले गोविंद कुं, याते परम पद पावे॥
- पुस्तक : गवरी बाई (भारतीय साहित्य के निर्माता)
- संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल
- रचनाकार : गवरी देवी
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली
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