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बारहमासा

barahmasa

तुलसी साहब

तुलसी साहब

बारहमासा

तुलसी साहब

और अधिकतुलसी साहब

    सत सावन बरषा भई, सुरत बही गंगधार।

    गगन गली गरजत चली, उतरी भौजल पार॥

    भादौं भजन बिचारिया, शब्दहि सुरत मिलाप।

    आप अपनपौ लख पड़े, छूटे छल बल पाप॥

    कुसल क्वार सतसंग में, रंग रँगो सतनाम।

    और काम आवें नहीं, तिरिया सुत धन धाम॥

    कातिक करतब जब बने, मन इन्द्री सुख त्याग।

    भोग भरम भवरस तजै, छूटै तब लव लाग॥

    अगहन अमी रस बस रहौ, अमृत चुवत अपार।

    पाँइ परसि गुरु को लखौ, होय परम पद पार॥

    पूस ओस जल बुंद ज्यों, बिनसत बदन विचार।

    तन बिनसे पावे नहीं, नर तन दुर्लभ छार॥

    माह महल पिया को लखो, चखो अमर रस सार।

    वार पार पद पेखिया, सत्त सुरत की लार॥

    फिर फागुन सुन में तको, शब्दा होत रसाल।

    निरख लखौ दुरबीन से, ज्यों मत मीन निहाल॥

    चैत चेत जग झूठ है, मत भरमो भव जाल।

    काल हाल सिर पर खड़ा, छूटे तन धन माल॥

    सुनो साख बैसाख की, भाषि गुरुन गति गाय।

    सब संतन मत की कहूँ, बूझें सत मत पाय॥

    जबर जेठ जग रीति है, प्रीति परस रस जान।

    आन बात बस ना रहौ, सब मति गति पहिचान॥

    जो असाढ़ अरजी करौ, धरो संत श्रुति ध्यान।

    ज्ञान मान मति छांड़ के, बूझौ अकथ अनाम॥

    बारह मास मत भापिया, जानें संत सुजान।

    तुलसिदास विधि सब कही, छूटै चारौ खान॥

    सत्त यानी सत साहेब (तुलसी साहब) फ़रमाते हैं कि सावन में वर्षा होती है और सुरत की धार गंगा की धार की तरह गरजती हुई गगन की गली की ओर चलती है और भव जल के पार पहुँचती है। भादों का महीना भजन में लगने का जिससे सुरत अपने पिया से मिलती है और अपने रूप को लखती है। सब छल बल और पाप नष्ट हो जाते हैं। अश्विन के महीने में जीव का भला इसी में है कि सतसंग करे और सत्तनाम के रंग में रंग जावे। सत्तनाम के अलावा और कोई जैसे तिरिया, सुत, धन-धाम इत्यादि काम नहीं आएगा। इनमें नहीं फँसना चाहिए। कार्तिक के महीने में इसका काम पूरा होगा, जब यह मन और इंद्रियों के सुखों का परित्याग कर देगा। जब यह दुनिया के भरम और रस को छोड़ेगा तब इसकी संसार की लाग छूटेगी। अगहन में अमृत की अपार धार टपक रही है। उसके आनंद में मगन रहो। गुरु के दर्शन पाकर और चरण स्पर्श कर भवसागर के पार परम पद में पहुँचोगे। पूस मास में इस बात को समझो कि शरीर पानी के ओले की तरह नाश होने वाला है। जब तन नाश हो जाएगा तो अपना उद्देश्य कैसे पाओगे? यह नर शरीर जो अति दुर्लभ है, वृथा बरबाद जाएगा। माघ में पिया के महल को लखो और सच्चा अमर आनंद प्राप्त करो। तब तुम्हें सुरत से वह देश जो भवसागर के पार है, दिखलाई पड़ेगा। फिर फागुन मास में सुन्न में पहुँचकर उसे लखो जहाँ मधुर शब्द हो रहा है। दूरबीन से उसको निरखो और जैसे मछली पानी में मगन होती है उस तरह मगन होओ। चैत के महीने में चेतो और समझो कि यह जगत झूठा है। इसके जाल में मत फँसो और मत भरमो। काल तुम्हारे सिर पर घात करने को खड़ा है और एक दिन तुम्हारा तन और धन माल सब छूट जाएगा। बैसाख में जीवों की साख का हाल सुनो जो संत दया करके फ़रमाते हैं। मैं सब संतों के मत का वर्णन करता हूँ। अगर कोई संत मत को धारण करे तो वह मेरी बात समझ सकता है। जगत का हाल जेठ महीने की तरह तपन देने वाला और दुखदाई है। तुम इस बात को जानो कि शब्द के परस से प्रेम का सुख प्राप्त होता है। अन्य बातों के वशीभूत मत होओ और सत्त मत की गति को पहचानो यानी संत मत को बूझो। असाढ़ महीने में प्रार्थना करो और सुरत से संतों का ध्यान करो। वाचक ज्ञान में अहंकार की मति छोड़कर अकथ और अनाम मालिक को बूझो। मैंने जो कुछ बारहमास का वर्णन किया है उसे संत जानते हैं। तुलसी साहब फ़रमाते हैं कि मैंने सब विधि बयान की है। उसके अनुसार जो चले, उसका चारों खान में भरमना छूट जाएगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुलसी साहब (हाथरस वाले) की बानी (पृष्ठ 92)
    • संपादक : ज्ञान दास माहेश्वरी
    • रचनाकार : तुलसी साहब
    • प्रकाशन : स्वामी बाग, आगरा
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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