अवधू सब्दहि करो बिचारा
awdhu sabdahi karo bichara
अवधू सब्दहि करो बिचारा।
सो पद गहों सरन रहो अस्थित पार ब्रह्म ते न्यारा॥
पार ब्रह्म वारे एह लटका अंधुता चुत में लूटा।
अबिनासी बिनसत हम देखा अचल नाहिं चलि फूटा॥
बिंदरी कहे बीधि तेहि लूटा अवर जाहां तक पोया।
नाथ नाथ के कैद कियो है इंद्र महेसहि खोया॥
बड़-बड़ गीध पकरि के साधा किमि करि पर फहरायो।
चुंगत चारा जिमि पर रहेऊ उड़ि कांहां तुम धायो॥
एक सरन सतगुर का जानो सो तुम किमि करि जावै।
वार पार एह रहट लगा है एक बूड़े एक आवै॥
सतगुर सब्द साधि जौ आवै वार पार ते भीना।
कहें दरिया कोइ संत बिबेकी निकलि गया परमीना॥
- पुस्तक : संत दरिया (बिहार वाले) (पृष्ठ 347)
- संपादक : काशीनाथ उपाध्याय
- रचनाकार : संत दरिया (बिहार वाले)
- प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास, पंजाब
- संस्करण : 2016
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