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ऐसो राम कवनि बिधि जानी

aiso ram kawani bidhi jani

भीखा साहब

भीखा साहब

ऐसो राम कवनि बिधि जानी

भीखा साहब

और अधिकभीखा साहब

    ऐसो राम कवनि बिधि जानी।

    दृष्टि मुष्टि कबहीं नहिं आवत, जनम मरन जुग बहुत सिरानी॥

    अगम अगोचर बसत निरंतर, जा के सीस पाँव पानी।

    निर्गुन निर्विकार सुख सागर, अपरंपार अखंडित बानी॥

    ईसुर के केतहि ईसुरता, साहब अविगत अकथ कथानी।

    अगह अकह अनभव अन मूरति, थाके सकल खेाजि मुनि ज्ञानी॥

    अलख को लखे अदेख को देखे, ब्यापक पूरन चारिउ खानी।

    निरंकार निरुपाधि निरामय, भीखा रंग रूप निसानी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : भीखा साहब की बानी (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : भीखा साहब
    • प्रकाशन : बेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1919

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