अब मैं आयो सरन तुम्हारी
ab main aayo saran tumhari
अब मैं आयो सरन तुम्हारी।
भजन की मोहिं राम दुहाई, मडीयौ चरन मुरारी॥
यहु संसार झूठ हम देख्या, तामहिं सचु नहिं भाई।
राम भजन विचि अंतर पारै, बिषमहि देइ भुलाई॥
भरम-करम का मना दिठावै, भरमावै अति भारी।
नाव छुड़ाइ नरक में बोवै, ऐसे जीव विकारी॥
झूठी काया झूठी माया, झूठा परपंच पसारा।
जम की त्रास अधिक ता माहीं, तातै किया प्रहारा॥
वोछी आ अलप जीवन प्रभु, विनसत नाहिन बारा।
जन तुरसी सरनाई आयौ, देहु-देहु दीदारा॥
- पुस्तक : निरंजनी सप्रदाय और संत तुरसीदास निरंजनी (पृष्ठ 151)
- संपादक : भगीरथ मिश्र
- रचनाकार : तुरसीदास निरंजनी
- प्रकाशन : राष्ट्रभाषा मुख्यालय, पुणे
- संस्करण : 1964
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