अब काहे भूलहु हो भाई
ab kahe bhulahu ho bhai
अब काहे भूलहु हो भाई, तूँ तो सतगुरु सबद समइलेहु॥
ना प्रभु मिलिहै जोग जाप तें, ना पथरा के पूजे।
ना प्रभु मिलिहै पउआँ पखारे, ना काया के भूँजे॥
दया धरम हिरदे में राखहु, घर में रहहु उदासी।
आन कै जिव आपन करि जानहु, तब मिलिहै अविनासी॥
पढ़ि-पढ़ि के पंडित सब थाके, मुलना पढ़ै कुरानां।
भस्म रमाइ के जोगिया भूले, उनहूँ मरम न जाना॥
जोग जाप तहिया से छाड़ल, छाड़ल तिरथ नहाना।
दूलनदास बंदगी गावै, है यह पद निर्बाना॥
- पुस्तक : संतबानी (पृष्ठ 9)
- रचनाकार : दूलनदास
- प्रकाशन : प्रोप्रैटर वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
- संस्करण : 1914
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