वह दिव्य आलिंगन!
wo diwy alingan!
पत्र न० 1
5/7/1919
प्रियवर......,
अरे भई, मेरी बात भी मान लो। तुम पीटर में बहुत दिन रह चुके। मेरा तो यही ख़याल है। किसी एक ही जगह पर बहुत दिन रहना ठीक नहीं। इससे आदमी थक जाता है और उसकी तबीअत ऊब जाती है। अगर राज़ी हो तो इधर की यात्रा का प्रबंध करूँ। बोलो! सारा इंतिज़ाम हम लोगों के सुपुर्द रहा।
तुम्हारा,
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पत्र नं० 2
18/7/1919
प्रियवर...,
इधर विश्राम के लिए चले आओ। में अक्सर दो-दो दिन के लिए ग्रामों की ओर निकल जाता हूँ और वहाँ तुम्हारे रहने का प्रबंध कर सकता हूँ। चाहे थोड़े दिन रहना, चाहे बहुत दिन। अरे भई, मेरी बात मान के चले आओ।
तार दो, कब आ रहे हो? तुम्हारे सफ़र के लिए हम एक कम्पार्टमेंट रिज़र्व करा देंगे, जिससे तुम आराम से आ सको। थोड़े दिन के लिए आब-ओ-हवा बदलने से तुम्हारी तबीअत ठीक हो जाएगी।
जवाब का इंतिज़ार कर रहा हूँ।
तुम्हारा,
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पत्र नं० 3
9/8/1921
प्रियवर...,
मैं तो इतना थक गया हूँ कि अपनी जान बचाने के लिए भी कुछ नहीं कर पाता। लेकिन तुम? तुम्हारे थूक के साथ ख़ून आने लगा है और फिर भी बाहर जाने का नाम नहीं लेते! भई, मेरी बात मानो, तुम्हारी यह ज़िद्द बिलकुल बेजा और फ़िज़ूल है। यूरोप के किसी अच्छे सेनीटोरियम (आरोग्यशाला) में तुम्हारा इलाज ठीक तौर पर हो सकेगा और वहाँ तुम यहाँ से तिगुना काम कर सकोगे। मेरी भी सुन लो। यहाँ, हमारे नज़दीक रहते हुए, न तो तुम्हारा कुछ इलाज हो सकता है और न तुम कुछ साहित्यिक काम ही कर पाते हो। यहाँ तो ऊल-जलूल कोलाहल तथा व्यर्थाभिमान-निरर्थक अहंकार का बोलबाला है। यहाँ से बाहर चले जाओ और तंदुरुस्ती हासिल करो। ज़िद मत करो भाई! मेरी विनती भी सुन लो।
तुम्हारा,
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ये अमर पत्र 20-21 वर्ष पहले के हैं और संसार के एक महान् राजनीतिक नेता ने एक विश्वविख्यात लेखक को भेजे थे। उनके नाम थे लेनिन और गोर्की!
दरअसल लेनिन गोर्की को देश की एक अमूल्य विभूति मानते थे और उनके स्वास्थ्य के विषय में अत्यंत चिंतित रहते थे। घोर-से-घोर कार्य-व्यस्त रहने पर भी वे इस तरह की पचासों चिट्ठियों के लिखने के लिए वक़्त निकाल लेते थे। तीसरी चिट्ठी तो तब लिखी गई थी, जब लेनिन बिलकुल थके हुए तथा बीमार थे और स्वास्थ्यप्रद भोजन भी उन्हें नसीब नहीं होता था!
लेनिन की पचासवीं वर्षगाँठ थी। उनके मित्रों ने एक षड्यंत्र किया। प्राइवेट तौर पर एक मीटिंग का प्रबंध किया और लेनिन को इस बात की ख़बर भी न दी कि उनकी रजत-जयंती का उत्सव मित्र मंडली में मनाया जा रहा है। किसी तरह भरमाकर वे लोग लेनिन को उस स्थान पर लाए जहाँ यह मंडली इकट्ठी हुई थी। जब लेनिन को इस षड्यंत्र का पता लगा तो वे बहुत नाराज़ हुए और अपने दोस्तों को डाँट बताते हुए बोले।
“जनाब, आपने समझ क्या रखा है? यह भी कोई दिल्लगी है! आप लोगों के नाम की रिपोर्ट केंद्रीय कमेटी के पास की जाएगी, क्योंकि आप भले आदमियों के क़ीमती वक़्त की बर्बादी इस तरह की बेहूदा कार्रवाइयों में किया करते हैं।”
इसके बाद गोर्की खड़े हुए और उन्होंने संक्षेप में लेनिन के व्यक्तित्व का ऐसा शब्द-चित्र खींचा कि श्रोताओं के हृदय तथा नेत्र भर आए। इतने में देखते क्या हैं कि दोनों महापुरुष एक-दूसरे का गाढ़ आलिंगन कर रहे हैं! लेनिन ने गोर्की को छाती से लगा लिया था। कई मिनट तक यह दृश्य रहा।
सुना है कि प्राचीन युग में स्वर्ग के देवता मर्त्यलोक के इसी प्रकार के दृश्य देखकर आकाश से फूल बरसाया करते थे! पर स्वर्ग-देवता और आकाश-पुष्पों की कहानी तो बहुत पुरानी हुई, इस नवयुग में और युग-युगांतर तक सहृदयों की श्रद्धांजलि का पात्र रहेगा राजनीति तथा साहित्य का वह अनुपम संगम-लेनिन और गोर्की का वह दिव्य आलिंगन!
- पुस्तक : अमिट रेखाएँ (पृष्ठ 235)
- संपादक : सत्यवती मलिक
- रचनाकार : बनारसीदास चतुर्वेदी
- प्रकाशन : सत्साहित्य प्रकाशन
- संस्करण : 1955
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