सिरि-थूलिभद्द फागु (तृतीय भास)
siri thulibhadd phagu (tritiy bhas)
अइ सिंगारू करेइ वेस मोटइ मन-ऊलटि
रइय (?) अंगि बहु-रंगि चंगि चंदण-रस-ऊगटि॥
चंपक-केतकि-जाइ-कुसुम सिरि खुंप भरेई
अति-अच्छउ सुकुमाल चीरू पहिरणि पहिरेइ॥१०॥
लहलह-लहलह-लहलहए उरि मोतिय-हारो
रणरण-रणरण-रणरणए पगि नेउर-सारो॥
झगमग-झगमग-झगमगए कानिहिं वर कुंडल
झलहल-झलहल-झलहलए आभणाहं मंडल॥११॥
मयण-खग्गु जिम लहलहए जसु वेणी-दंडो
सरलउ तरलउ सामलउ (?) रोमावलि दंडो॥
तुंग पयोहर उल्लसइ [जिम] सिंगारथवक्का
कुसुम-वाणि निय अमिय-कुंभ किर थापाणि मुक्का॥१२॥
कज्जलि-अंजिवि नयण जुय सिरि सइँथउ फाडेई।
बोरीयोवडि-कंचुलिय पुण उरमंडलि ताडेइ॥१३॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 150)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : जिन पद्म सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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