सिरि-थूलिभद्द फागु (पंचम भास)
siri thulibhadd phagu (pancham bhas)
अह नयण कडक्खिहिं आहणए वांकउ जोवंती
हाव-भाव सिंगार-भंगि नवनविय करंति॥
तहवि न भीजइ मुणि-पवरों तउ वेस बोलावइ
तवणतुल्लु तुह विरह, नाह! मह तणु संतावइ॥१८॥
बारहँ वरिसहँ तणउ नेहु किणि कारणि छंडिउ
एवडु निट्ठुरपणउ काइँ मू-सिउँ तुम्हि मंडिउ॥
थूलि भद्द पभणेइ वेस! अइ-खेदु न कीजइ
लोहिहि घडियउ हियउ मज्झ, तुह वयणि न भीजइ॥१९॥
‘मह विलवंतिय उवरि, नाह! अणुराग धरीजइ
एरिसु पावस-कालु सयलु मूसिउँ माणीजइ'॥
मुणिवइ-जंपइ ‘वेस! सिद्धि-रमणी परिणोवा
मणु लीणउ संजम-सिरोहिं सिउँ भोग रमेवा'॥२०॥
भणइ कोस ‘साचउँ कियउँ ‘नवलइ राचइ लोउ’
मूं मिल्हिवि संजम-सिरिहिं जउ रातउ मुणि-राउ’॥२१॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 151)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : जिन पद्म सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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