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सिरि-थूलिभद्द फागु (चतुर्थ भास)

siri thulibhadd phagu (chaturth bhas)

जिन पद्म सूरि

जिन पद्म सूरि

सिरि-थूलिभद्द फागु (चतुर्थ भास)

जिन पद्म सूरि

और अधिकजिन पद्म सूरि

    कन्न-जुयल जसु लहलहंत किर मयण हिंडोला

    चंचल चपल तरंग चंग जसु नयण-कचोला॥

    सोहइ जासु कपोल-पालि जणु गालिमसूरा

    कोमल विमलु सुकंठु जासु वाजइ संख-तूरा॥१४॥

    लवणिमरसभरकूवडिय जसु नाहिय रेहइ

    मणयराय किर विजयखंभ जसु उरु सोहइ॥

    जसु नहपल्लव कामदेव अंकुस जिम राजइ

    रिमिझिम रिमझिमि पाय-कमलि घाघरिय सुवाजइ॥१५॥

    नवजोवण विलसंत देह नवनेह गहिल्ली

    परिमल-लहरिहिं महमहंत रइकेलि पहिल्ली॥

    अहर-बिंब परवाल-खंड वर-चंपावन्नी

    नयण-सलूणींय हाव भाव बहु-रस-संपुन्नी॥१६॥

    इय सिंगार करेवि वर जउ आवी मुणि पासि

    जोएवा कउतिगि मिलिय सुर-किन्नर आकासि॥१७॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 150)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : जिन पद्म सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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