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श्री नेमिनाथ रास (धूवउ ४)

shri neminath ras (dhuwau ४)

सुमति गणि

सुमति गणि

श्री नेमिनाथ रास (धूवउ ४)

सुमति गणि

तो भयभौउ भणइ हरि रामह भाउ नहिय वासु इह ठावह।

लेसइ नेमिकुमरू तह रज्जू, हाहा हियइ धसक्कइ अज्जु॥२६॥

जसु बालस्सवि जसउं महाबलु, कित्तिय मित्त तासु इहु महबलु।

राम भणइ मन करइ विसाऊ, रज्जु लेसइ तुह कवि भाउ॥२७॥

इहु संसारु विरत्तु जिणेसरू, मुक्ख सुक्ख कंखिउ परमेसरु।

रज्जु सुक्ख करि मुद्धु जुवंछइ, घोर नरइ सो निवड़इ निच्छइ॥२८॥

पुणवि भणइ हरि रामह अग्गइ, बंधव गय इह पुहवि समग्गइ।

अतुल परिवकमु नेमिकुमारू, लेसइ रज्जु किणइ सहारू॥२६॥

रामु जणद्दणु पड़िबोहेई कुग्गइ कारण रज्जु कु लेई।

मुद्ध जु बुद्धिवंतु कुवि होइ, अमिउ सुलहि किम्ब विसु भक्खेइ॥३०॥

तो निस्संकु हुअउ गोविंदू, भुंजइ भोग सुहइं सच्छंदू।

नेमिकुमारू विनमिउ सुरिंदहि, रमइ जहिच्छइ हलि गोविंदिहि॥३१॥

अन्न दियहि जायविहिं मिलेवि, भणिउ कुमरु पड़िबंधु कदेवि।

परिणिकुमार मणोरबह पूरि पियरह जिम हुइ सुक्खु सरीरि॥३२॥

बुल्लइ नेमिकुमारो मिल्लहि असगाहू।

कण्ह माय पिय तुम्हि इउ भणिउ साहू॥३३॥

स्रोत :
  • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ
  • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
  • रचनाकार : सुमति गणि
  • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
  • संस्करण : 1976

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