तुट्ठ रायमई कहवि न माई हलप्फल धरि हिंडई धाई।
हउं पर धन्न इक्क सुकयत्थिय नेमि कुमारह रेसि जु पत्थिय॥४२॥
ए सुमिणेवि मणोरह नासी, जं महु नेमि कुमरु वरु होसी।
नेमि कुमरु पुणु जाणिविं समऊ, लोगंतिय पड़ि बोहिउ अमऊ॥४३॥
तिन्नि बरिस सय रहि कुमरत्तिहि, संवच्छरु जउं देविणु दत्तिहि।
राय सहस परिवुडु गुण गुढउ, उत्तर कुरु सिवयहि आरूढउ॥४४॥
उज्जल सिहरि चडेवि वज्जिवि सावज्जइ।
सावण सिय छट्ठी ए पवज्ज पवज्जइ॥४५॥
तं निसुणे विणु रायमई चितइ, धिगु धिगु एहु संसारू।
निच्छय जाणिउ हेव मइं न परणइ नेमि कुमारु॥४६॥
जो विहुयण रूपिण करि घडियउं, जं वन्नंतु कुरुवि लडखडिउ।
सुर रमणी हवि जो करि दुल्लुहु, सो किम्व हुइ महु मुद्धिय वल्लहु॥४७॥
पुणरवि चिंतइ रायमई जइ हउं नेमिकुमारिण मुक्कि।
तुवि तमु अज्जवि पयसरणु इहु मणि निच्छउ लोयणु थक्कि॥४८॥
अह जिणवर बारवइ भमंणह परमन्निण पाराविय संतह।
दिण चउपन्नह अंति असोअह मावस केवलु हुयड असोयह॥४९॥
तो मुण साहुणि सावय साविय, गुणगणि रोहण जिणमय भाविय।
इहु पहुचउ विहु तित्थु पवित्तउ, नाग चरण दंसिणिहि पवित्तउ॥५०॥
रायमई पहु पाय नमेविणु नेमि पासि पवज्ज लहेविणु।
परम महासई सील समिद्धिय नेमिकुमारह पहिलउं सिद्धिय॥५१॥
नेमि जिणुवि भवियणु पडिंबोहिंवि, सूरु जेम्व महि मंडलु सोहिवि।
आसाढाट्ठंमि सुद्धि मुणिसह, संपत्तउ सिद्धिहिं परमेसरू॥५२॥
सिरि जिणवइ गुरू सीसिंइ इहु मण हर मासु।
नेमि कुमारह रहउ गणि सुमइण रास॥५३॥
सासण देवी अंबाई इहु रासु दियंतह।
विग्धु हरउ सिग्धू संधह गुणवंतह॥५४॥
इति श्री नेमिकुमार रासक। पंडित सुमति गणि विरचितः॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 52)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : सुमति गणि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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