रेवंत गिरि रासु (द्वितीय कडवम्)
rewant giri rasu (dwitiy kaDwam)
दु विहि गुज्जर-देसे रिउ-राय-विहंडणु,
कुमरपालु भूपालु जिण-सामण-मंडणु॥
तेण संठाविओ सुरठ-दंडाहिवो, अंबओ सिरे-सिरिमाल-कुल-संभवो॥
पाज सुविसाल तिणि नठिय अंतरे धवल पुणु परव मराविय॥
धनु सु धवलह भाउ जिणि पाग पयासिय,
बार-विसोतर-वरसे जसु जसि दिस वासिय॥१॥
जिम जिम चडइ तडि कडणि गिरनारह,
तिम तिम ऊडइं जण भवणसंसारह॥
जिम जिम सेउ-जलु अग्गि पालाट ए,
तिम तिम कलिमलु सयलु ओहट्ट ए॥
जिम जिम वायइ वाउं तहि निज्झर-सीयलु,
तिम तिम भव दुह दाहो तरकणि तुट्टइ निच्चलु॥२॥
कोइल-कलयलो मोर-केकारवो, सुंमए महुयरमहुरु गुंजारवो॥
पाज चंडतह सावयालोयणी, लाखारामु दिसि दीसए दाहिणी॥
जलद-जाल-वंबाले नीझरणि रमाउलु।
रेहइ उज्जिल-सिहरु अलि-कज्जल-सामलु॥३॥
वहल-वुहु धातु-रस-भेउणी, जत्थ उलदलइ सोवन्नमइ मेउणी॥
जत्थ दिप्पंति दिवोसही सुंदरा, गुहिर वर गरुय गंभीर गिरि-कंदरा॥
जाइ-कुदुं-बिहसन्तो जं कुसुमिहि संकुलु,
दीसइ-दस-दिसि दिवसो किरि तारा-मंडलु॥४॥
मिलिय-नवलवलि-दल कुसुम-झलहालिया,
ललिय-सुरमहिवलय-चलण-तल-तालिया॥
गलिय-थलकमल-मयरंद-जल-कोमला,
विउल सिल-वट्ट सोहंति तहि संमला॥
मणहर-घण घण-गहणे रसिर-हसिय-किंनरा,
गेउ मुहुरु गायतो सिरि-नेमि-जिणेसरा॥५॥
जत्थ सिरि-नेमि-जिणु अच्छप अच्छरा,
असुर-सुर-उरग किंनरय-विज्जाहरा॥
मउड-मणि-किंनरय पिंजरिय-गिरि-सेहरा,
हरसि आवंति बहु-भत्ति-भर-निव्भरा॥
सामिय-नेमि-कुमार-पय पंकय-लंबिउ,
धर-धूल विजिण धन्न मन पूरइ वंछउ॥६॥
जो भव कोडाकोड्डि अनु सोवन्नु धणु दाणु जउ दिज्जए॥
सेवउ जड-कम्मघण-गंठि जउ तिज्जए,
तउ उज्जितसिहरु पाविज्जए॥७॥
जम्मणु जोव जाविय तस तहि कयत्थू,
जे नर उज्जिंत-सिहरु पेरकइ वरतित्थू॥
आसि गुरजर-धरय जेण अमरेसरु,
सिरि जयसिंध-देउ पवर-पुहवीसरु॥
हणवि सोरठु तिणि राउ खंगारउ, ठविउ साजण दडहिवं सारउ॥
अहिणवुनेमि-जिणिंद तिणिभवणु कराविउ,
निभ्मलु चंदरु बिबे निय-नाउं लिहावउ॥८॥
थोर-विरकंभ वायं भ-रमाउलं, ललिय पुत्तलिय कलस-कुल-संकुलं॥
मंडपु दंड घणु तुंगतर तोरणं,
धवलिय वज्झि रुणझणिरि किंकणि-घणं॥
इक्कारसय सहीउ पंचासीय क्च्छरि,
नेमि भुयणु उद्धरिउ साजणि नर-सेहरि॥६॥
मालव-मंडल-गुह-मुह-मंडणु-भावड-साहु दीलिधु खंडणु॥
आमलसार सोवन्नु तिणि कारिउ,
किरि गयणगण-सूरु अवयारिउ॥
अवर-सिहर-वर कलस झलहलइ मणोहर,
नेमि-भुयणि तिणि दिट्टइ दुह गलइ निरंतर॥१०॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 40)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : विजयसेन सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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