पंचपंडव चरित रासु (ठवणि १०)
panchpanDaw charit rasu (thawani १०)
सूयर देखी मेल्हिउं बाणु अरजुन सिउं कुणु करइ संधाणु
तिणि खिणि मेल्हिउं वणचरि बाणु ऊडिउं गयणि हूउं अप्रमाणु॥३७॥
अरजुन वनचर लागउ वादु करउं झुझु ऊतारउं नादु
एकसर कारणि झूझइं बेउ करइ परीक्षा ईसर देउ॥३८॥
खूटां अर्जुन सवि हथीयार मालझूझ बेउ करइं अपार
साहिउ अर्जुनि वनचरु पागि प्रकटु हुई बोलाइ “वरु मागि''॥३९॥
अर्जुनु बोलइ “चरु भंडारि पाछइ आवइ लउ उपगारि''
खेचरु बोलइ सांभलि “सामि गिरि वेयड्ढु सुणीइ नामि॥४०॥
इंद्रु अछइ रहतू पुरराउ विज्जमालि ते लहुडउ भाउ
चपलु भणी नइ काढिउ राइ रोसि चडिउ राखसपूरि जाइ॥४१॥
इंद्रवयणु इकु तुम्हि सांभलउ करीउ पसाउ नइ दाणव दल''
हरखिउ अरजुनु जां रथि चडिउ दाणवघरि बुंबारवु पडिउ॥४२॥
असुर विणासी किउ उपगारु इंद्रि लोकि हूउ जय जयकारु
इंद्र तणुं ए कीधुं काजु अनुर विणासी लीधउं राजु॥४३॥
कवच मउड अनइ हथीयार इंद्रि आप्यां तिहूयणि सार
धनुषवेदु चित्रंगदि दीउ पुत्रु भणी इंद्रि परठीउ॥४४॥
पाछउ आवइ चडीउ विमाणि माडी बंधव पणमइ रानि
एतइं कमलु अगासह पडीउं बइठी द्रू पदि करयलि चडिउं॥४५॥
सवां कमल नी इच्छा करइ भीमसेनु तउ वनि बनि फिरइ
असउण देखी बोलइ राउ भाम पासि वछेदिइं जाउ॥४६॥
माग न जाणइ खींजिउं सहू समरी राइ हिडंबा वहू
कुणबु ऊपाडी मेलिउं भीम जाणे दूखह आवी सीम॥४७॥
मुखु देखी सवि धडुआ तणु पंडव कूंयरु लडावइं धणुं
जाम हिडंबा पाछी गई बात अपूरव तां इकहुई॥४८॥
द्रु पदि वयणि सरोवर माहि पइठउ भीमु भलेरइ ठाइ
भीमु न दीसइ वलतउ किमइ तउ झेपावइ अरजुन तिमइ॥४॥
केडइ नकुलु अनइ सहदेउ पाणी बूडा तेई बेउ
माइ मोकलावी पइठउ राउ सविहु हूउ एकु जु ठाउ॥५०॥
कांइ रोउं न लहइ रानि द्रू पदि कूंती रही बे ध्यानि
मनह माहि समरइ नवकारु ‘एहु मंत्र अम्ह करिसि सार'॥५१॥
बीजा दिवसह दिणयर उदइ ध्यान प्रभावि आव्या सइ
अछइ सोवन्नीकांबज हाथि एकु पुरुषु आविउ छइ साथि॥५२॥
माइ नमी मनि हरिखु धरिउ पुरुष पासि कहावइं चरीउ
एक मुनि पामइं के वलज्ञानु गयणि पहूचइ इंद्र विमानु॥५३॥
तुम्ह ऊपरि खलहिउ जाम जाणी सुरवइ बोलउं ताम
हुं पाठविउ वेगि पडिहारु जईअ पयालिकीउ उपगारु॥५४॥
सतीय बेउ छइं कासगि रही इंद्रह आइसु तु अम्ह कही
मेल्हउ पंडव वडइ वछेदि विणु हथियारह बांधा भेदि॥५५॥
॥वस्तु॥
नागपासह बंध नागपासह बंध छोडिवि
इंद्राइसि पंडवह नागराइ निजराजु दिद्धउ
हारु समोपीउ नरवरह सतीय रेसि अनु कमलु लिद्धऊ
अरजुन संगति झूझतां संपचूड सानिद्धु
मागीउ आवी तुम्ह पय पंचइ विद्या सिद्ध”॥५६॥
वरसि छडइ वरसि छडइ द्वैतवणि जाइं
दुज्जोहण घर घरणि सामि सिक्ख रडतीय मग्गइ
धम्मपुत्त वयणेण पुण इंदपुत्तु तिणि मग्गि लग्गइ
दुरयोधन चित्रंगदह मेल्हावी उहिं पत्थि
विज्जाहररायहं नमइं दुरयोधनु लेउ सत्थि॥५७॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 113)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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