पंचपंडव चरित रासु (ठवणि १)
panchpanDaw charit rasu (thawani १)
आह मनमाहि नरिंदो पारधि संभावइ
सई दलि रमलि करंतउ गंगातडि आवइ॥
गंगतडा तडि अछइ ओयणु
वित्थरि दीरधि बारह जोयणु
पासहरा वागुरीय बहूय
पइठा वणि कोलाहलु हूय॥
दह दिसि वाजइं हाक बहु जीव विणासइं
एकि धुसइं एकि धायई एकि आगलि नासइं॥
दह दिसि इम जां वनु अरोडइं
जीव बिणासइं तरूयर मोडइं
जां इम दलवइ परिधि लागइं
ताम असंभमु पेखइ आगइ॥
बिहुं खवे दो भाथा करयलि कोदंडो
बालीवेसह बालो भुयदंडपयंडो॥
राय पासि पहिलुं पहुचेई
पय पणमो वीनती करेई।
“सांभलि वाचा मुझ भूपाल
इणि वणि अछउं अम्हि रखवाल॥
जेती भुइं तूं राओ तेती तूं सरणि
मुझ मनु कां इम दूमइ जीवह मरणि''॥
तासु वयणु अवहेलइ राओ
अतिघणु घल्लइ जीवह घाउ
कोपि चडिउ तसे वणरखवालो
धनुष चडावइ जमविकरालो॥
हाकी भड ऊठाडइ आगला ति पाडइ
सरसे जंपउ ढाडइ राउत रूंसाडइ॥
बेटउ रूडु करंतउ जाणी
ताखणि आवी गंगाराणी
बेउ पखि झुझु करंतां राखइ
नियप्रिय आगलि नंदणु दाखइ॥
देखी गंगाराणी राजा आणंदिउ
मेल्ही सवि हथियार बेटउ आलिंगिउ॥
राउ भणइ “मइं किसउं पवारउ
हिव तुम्हि मइं सु घरि पाउधारो
राजु तुम्हारुं पूत्तु तुम्हारउ
अज्जीउ गंगे किसुं विचारउ”॥
पूत्ति भतारिहिं देवी अतिघणुं मानवी
पूत्तु समोपीउ सय आपणि नवि आवी॥
पिता पूत्तु बेउ रंगिं मिलीया
देवि मुकलीवी पाछा वलीया
हथिणाउरि पुरि राजु करेई
क्षण जिम दोहा बहूय गमेई॥
अन्ननिणंतरि रामलि करंतउ
जमणतडा तडि राउ पहूतउ।
जल खेलंती दीठी बाल
बेडी बइठी रूपविसाल॥
पूछइ बेडीवाहा तेडी
“ए कुण दीसइ बइठी बेडी''।
बेडीवाहा तणु जु सामी
राय पासि पभणइ सिरु नामी॥
“ए अम्हारा कुलसिणगारी।
सामी अछइ अजीय कूंयारी।
कोइ न पामु बरु अभिराम
सफलु करू जिम दैवह कामु”॥
तसु घरि बइसी राउ सा बाली मागइ
वात स बेडीवाहा पुण चींति न लागइ॥
“सांभलि सामी अम्ह घरसूत्तो
तुम्ह घरि अछइ गंगापूत्तो
मइं बेटी जउ तुम्हह देवी
तउ सइं हथि दूख भरेवी॥
कुरुववंसह केरउ मंडणु
राजु करेसि गंगानंदणु
धीय महारी तणां जि बाल
ते सवि पामइं दूख कराल॥
मुझ पासिं तुम्हि किसुं कहावउ
तुम्हि अम्हारी धीय न पामउ”।
इम निसुणीउ घरि पहुत नरिंदो
जिम विंध्याचलि हरीउ करिंदो॥
मनि चिंतइ सा बाल कुणहइ न कहेई
अंगे लागी झाल जिम देहु दहेई॥
कूंयरु बेडीवाहा मंदिरि
जाइउ मांगइ सा इ जि कूंयरि।
बेडीवाहइं तं जि भणीजइ
तींछे कूंयरि प्रतिज्ञा कीजइ॥
मंत्रि मउडउधा सहूइ तेडइ
बेडीवाहा भ्रंति सु फेडइ।
“वयण अम्हारुं म पडउ पाखइ
देवादेवी सहूयइ साखिइं॥
निसुणउ मइं जि प्रतिज्ञा कीजइ
चांदुलडइ चिय नामु लिहीजइ।
एकु राजु अनइ परिणेवुं
मइं अनेरइ जनमि करेवु॥
निसुणीउ वयणु गभेलउ बोलइ
“कोइ न तिहुयणि जो तुझ तोलइ।
निसुणउ हिव इह कन्न वृतंतू
एह रहइं होइ संतणु कंतू॥
॥वस्तु॥
नयरु अच्छइ नयरु अच्छइ रयणउरु नामि
रयणसिहरु नरवरु वसइ तासु गेहि एह बाल जाईय
विद्याधरि अपहरीय जातमात्र तडि जमण मिल्हीय-
इसीय वाच गयणह पडी तउ मइं लिद्ध कुमारि
सत्यवती नामि हुसिए संतणघरनारि''॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 95)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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