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पंचपंडव चरित रासु (ठवणि १२)

panchpanDaw charit rasu (thawani १२)

शालिभद्र सूरि

शालिभद्र सूरि

पंचपंडव चरित रासु (ठवणि १२)

शालिभद्र सूरि

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    ब्रतु लेउ विदुरु गयउ वन माहि कन्ह वली द्वारावती जाइ

    बिह पखि चालइं दल सामही बिहु पखि आवइं भड गहगही॥८३॥

    जरासिंध नउ आविउ दूउ कालकुमरु जंई लग्गइ मूउं

    वणिजारा नी बात सांभली जरासिंधु आवइ तुम्ह भणी॥८४॥

    उत्सव माहे उत्सवु एहु सविहुं वयरी आव्यो छेहु

    धर्मराय ना पणमीय पाय एतइं शल्यु सु परि दल जाइ॥८५॥

    ‘करण रहइं दिउ गुमाजणी' इसी वात तिणि जातइं भणी

    पांचि पंचाले लिउ सनाहु आविउ घडूउ कूंयरु अबाहु॥८६॥

    इंदचंडु अनु चंदापीडु चित्रंगदु अन्नइ मणिचूडु

    आविउ उत्तरू अनु वइराह मिलिउं वाग पंडव नउं घाहु॥८७॥

    धृष्टद्यमनु सेनानी कीउ बीजउ कन्हडदल सामह

    पवित्र भूमि सरसति नइ श्रोत्रि दलु आवठउं तिणि कुरुखेत्रि॥८८॥

    कऊरव नइ दलि गुरू गंगेऊ कृपु दुरयोधनु शल्यु मिलेऊ

    शकुनि दुसासणु जयदथु पुत्रु गरूऊ भूरिश्रवा भगदत्तु॥८६॥

    मिलीऊ जरासिंधु जादववइरि सह लगऊं अस हूइ सइरि

    दुरयोधनु अति मत्सरि चडीऊ जाई जरासिंध पाए पडीऊ॥९०॥

    “मुझ रहइं पहिलऊं दिउ अगेवाणु पंडव कन्ह दलऊं जिम माणु

    इहा सेनानी गंगेउ प्रह विहसी जुडिलां दल बेउ॥९१॥

    दल मिलीयां कलगलीय सुहड गयवर गलगलीया

    घर घ्रसकीय सलवलीय सेस सगिरिवर टलटलीया।

    रणवणीयां सवि संख तुर अंबरु आकंपीउ

    हयगयवर खुरि खणीय रेणू ऊडीउ जगुझंपीउ।

    पडइ बंध चलवलइं चिघ सींगिणि गुण सांधइं

    गइं वरि गइंवरू तुरगि तुरगु राऊत रणरू रूंघइं।

    भिडइं सहड रडवडइं सीस धड नड जिम नच्चइं

    हसइं धुसइं ऊससइं वीर मेगल जिम मच्चइं।

    गयधडगुड गडमडत धीर धवड घर पाडइं

    हसमसता सामंत सरसु सरसेलि दिखाडइं।

    सऊ सऊ रायह दिवसि दिवसि गंगेऊ विणासइ

    तऊ आठमइ दिवसि कन्हु मन माहि विमासइ।

    मेल्हीऊ शल्लिहिं सकति कूंअरु ऊतरु रणू पाडीऊ

    ताम सिखंडीय तणीय बुद्धि तऊ कान्हि दिखाडीऊ।

    अरजुनु पूठि सिखंडीयाह बइसी सर मंकइ

    पडीऊ पीयामहु समर माहि किम अरजुनु चूकइ।

    त्रिगवी सरू रहावीयऊ सरि गंगा आणी

    कऊतिगु दाखीऊ कऊरवांह पीऊ पायु पाणी।

    इग्यारमइ दिवसि दोणि ऊठवणी कीजइ

    आजु अपंडवु कइ अदोणू इम मनिं चींतीजइ।

    काहल कलयल ढक्क बूक त्रंबक नीसाणा

    तऊ मेल्हीऊ भगदत्ति राइ गजु करीऊ सढाणा।

    चूरइ रहवइ नरकरोडि दंतूसलि डारइ

    अरजुन पाखइ पंडकटकु हणतुं कुणु वारइ।

    दाणव दलि जिम दडवडंतु दंती देखी नइ

    घायऊ अरजुनु धसमसंतू वयरी मूंकी नइ।

    दिणि आथमतइ हणिऊ हाथि हरि पंडव हरखीया

    दिणि तेरमइ चक्रं व्यूहु गऊ कऊरवि मांडीय।

    अर्जुनु गिऊ वनि झूझिवा तिणि अभिवनु पइसइ

    मारीऊ जयदथि करीऊ झुझु तऊ अरजुनु रूसइ।

    करीऊ प्रतिज्ञा चडीऊ झूमि जयदथु रणि पाडइ

    भूरिश्रवा नऊ तीण समइ सरि बाहु विडारइ।

    सत्यकु छेदिऊं बलिंहिं सीसू तसु दिणि चऊदमइ

    रीतिहिं झूझइ विसम झूझि गुरू पडइ कीमइ।

    कूडऊं बोलइ धरमपूतू हथीयार छंडावइ

    छेदिउं मस्तकु धृष्टयु मनि क्रमु सिउं करावइ।

    बार पहर तऊ चडीऊ रोसि गुरनंदणु झूझइ

    रणि पाडिऊ भगदत्तु राऊ कऊरव दल मंझइ।

    करि करवालु जु करीऊ करण समहरि रण माडइ

    फारक पायक तूरग नाग नवि कोई छंडइ।

    धूलि मिलीय झलमलीय सयल दिसि दिणयरू छाईऊ

    गयणे दुंदुहि दमद्रमीय सूरवरिजसु गाईऊ।

    पाडइ चिंघ कबंध बंध धरमंडलि रोलइ

    बाणि बिनाणि किवणि केवि अरीयण धंधोलइ।

    कूडु करीऊ गोविंदि देवि रथु धरणिहिं खूतऊ

    मारीऊ अरजुनि करणू कूडि रणि अणझूझंतऊ।

    शल्यु शकुनि बेऊ हणीय वेगि नकूलि सहदेविं

    सरवरमाहि कढावीयऊ दुरयोधनु दैविं।

    राइ संनाहु समोपीयऊ भीमिहिं सू भिडेऊ

    गदापहारि हणीय जांघ मनि सालु सु फेडिऊ।

    रूठऊ राम मनाविवां जा पंडव जाइं

    कृपु कृतंवर्म आसवामता त्रिन्हइ धाइं।

    पाछपीलि पापी करइं कूडु दीधऊ रतिवऊ

    निहणीय पंच पंचाल बाल अनु राखसि जाऊ।

    सीसू शिखंडी तणऊ तामु छेदीऊ छलु साधीऊ

    पाप पराभव नइ प्रवेसि गतिमागु विंराधीऊ।

    कन्हडि बोधीऊ सूयण लोकु सहु सोगु निंवारीउ

    पहुतुं सहूइनीय नयरिं परीयणि परिंवारीय।

    ॥वस्तु॥

    दाधु दिन्हऊ दाधु दिन्हऊ कन्ह ऊवएसिं

    तहि अरजुणिं मिल्हिंऊ आगिणेय सरू अगिं ऊट्ठीय

    बहु दुक्खु मणिं चिंतवीय पंडसेन घण नयणि बुट्ठीय

    कन्हडु सहूउ परीठवीउ कुणबिं निवारी रोसु

    हथिणाउरपुरि आवीया अति आणंदिऊ लोकू।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 117)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : शालिभद्र सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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