भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि ९)
bharteshwar bahubli ras (thawani ९)
जु नवि मन्नसि आण, बरबहं बाहुबलि
लेसिइ तु तूं प्राण, भरहेसर भूयबलि।।१०८।।
जस छन्नवइ कोडि छइं पायक, कोडि बहुत्तरि फरकइं फारक
नर नरवर कुण पामइ पारो, सही न सकीइ सेना भारो।।१०९।।
जीवन्ता विहि सहू संपाडइ, जु तुडि चडिसि तु चडिउ पवाडइ
गिरि कंदरि अरि छपिउ न छूटइ, तू बाहुबलि मरि म अखूटइ।।११०।।
गय गद्दह हय हड जिम अन्तर, सीह सीयाल जिसिउ पटंतर
भरहेसर अन्नइ तूयं विहरउ, छूटिसि किम्हइ करंत न निहरू।।१११।।
सखसु सुंपि मनावि न भाई, कहि कुणि कूडी कूमति विलाइ
मुं झि म मूरख मरि न गमार, पय पणमीय करि करि न समार।।११२।।
गढ गंजिउ भड भंजिउ प्राणि, तइ हिव सारइ प्राण विनाणि
अरे दूत बोली नवि जाण, तुं ह आव्या जमह प्राण।।११३।।
कहि रे भरहेसर कुण कहीइ, मइ सिउं रणि सुरि असुरि न रहीइ
जे चक्किइं, चक्रवृति विचार, अम्ह नगरि कूं भार अपार।।११४।।
आपणि गंगा तीरि रमंता, धसमस धूं धलि पडीय घमंता
तई उजालीय गयणि पडंतउ, करुणा करीय वली झालंतउ।।११५।।
ते परि कांइ गमार वीसार, जु तुडि चडिसी तु जाणिसि सार
जउ मउडुधा मउड उतारउं, खहिरू रिल्लि जुन हयगय तारउं।।११६।।
जउ न मारउ भरहेसर राउ, तउ लाजइ रिसहेसर ताउ
भड भरहेसर जई जणावे, हय गय रह वर वेगि चलावे।।११७।।
वस्तु
दूत जंपइ, दूत जंपइ, सुणि न सुणि राउ
तेह दिवस परि म न गिणसि, गंग-तीरि खिल्लंत जिणि दिणि
चल्लंतइ दल भारि जसु, सेस सीस सलसलइ फणि मणि
ईमई याण स मानि रणि, भरहेसर छइ दूरि
आपापूं वेढिउं गणे, कालि उगंतइ सूरि।।११८।।
दूत चल्लिज दूत चल्लिउ, कहीय़ इम जाम
मंतिसरि चित्तविउ, तु पसाउ दूतह दिवारइ
अवर अठाणूं कुमर वर, वाइ सोइ पहनु पचारइ
तेह न मनिउ आविउ, वलि भरहेसरि पासि
अखई य सामिय संधिबल बंधवसिउं म विमासि।।११९।।
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 11)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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