भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि १०)
bharteshwar bahubli ras (thawani १०)
तउ कोपिहिं कलकलीउ काल के...य काला नल
कंकोरइ कोरंबीयउ करमाल महाबल
कालह कलयलि कलगलंत मउडाधा मिलीया
कलह तणइ कारणि करालं, कोपिहि परजलीया।।१२०।।
हऊय कोलाहल गहगहाटि गयणंगणि गज्जिय
संचरिया सामंत सुहड सामहणीय सज्जीय
गडयड़ंत, गय गडीय गेलि गिरिवर सिर ढालई
गूगलीया गुलणइ चलंत करिय ऊलालइं।।१२१।।
जुडइं भिउइं भडहउइं खेदि खडखडइं खडाखडि
धाणीय धूणीय धोसवइं दंतूसलि दोत [तडा] डि
खुरतलि खोणि खणति खेदि तेजीय तखरिया
समइं धसइं धसमसइं सादि पयसइं पाषरिया।।१२२।।
कंधग्गल केकाण कवी करंडइ कडीयाली
रणणइ रवि रण वखर सरवर घण घाघरीयाली
सींचाणा वरि सरइं फिरइं सेलइं फोकारइं
उडइं आडइं अंगि रंगि असंवार विचारइं।।१२३।।
धमि धामइ धडहडइं धरणि रथि सारथि गाढा
जडीय जोध जडजोड जरद सन्नाहि सन्नाडा
पसरिय पायल पूर कि पुण रलीया रयणार
लोह लहर वर वीर वयर वहवटिइं अवायर।।१२४।।
रयणीय रवि रण तूर तार त्रंबक त्रह त्रहीया
ढाक ढूक ढम ढमीय ढोले राउत रहरहीया
नेच नीसांण निनादि नींझरण निरंभीय
रण भेरी भुंकारि भारि भूयबलिहिं वियंभीय।।१२५।।
चल चमाल करिमाल कुंत कडतल कोदंड
झलकइं साबल सबल सेल हल मसल पयंड
सींगिणि गुण टंकार सहित बाणावलि तणइं
परशु उलालइं करि धरइं भाला उलालइं।।१२६।।
तीरीय तोमर भिंडमाल डबतार कसबंध
सांगि सकित तरूआरि छुरीय अनु नागतिबंध
हय खर रवि उछलीय खेह छाईय रविमंडल
धर धूजइ कलकलीय कोल कोपिउ काहंगल।।१२७।।
टलटलीया गिरिटेक टोल खेचर खलभलीया
कडडीय कूरम कंधसंधि सायर झलहलीया
चल्लीय समहरि सेस सिसु सलसलीय न सक्कइ
कंचण गिरि कंधार भरि कमकमीय कसक्कइ।।१२८।।
कंपीय किनर कोडि पडीय हरगण हडहडीया
संकिय सुरवर सगि सयल दाणव दडवडीया
अति प्रलंब लहकइं प्रलंब वल विंध चिहुं दिसि
संचरिया सामंत सीस सीकिरिहिं कसाकसि।।१२९।।
जोईय भरह नदि कटक मूं छह वल घल्लइ
कुण बाहूबलि जे उ बरव मइं सिउं बल बुल्लइ
जइ गिरि कंदरि विचरि वीर पइसंतु न छूटइ
जइ थली जंगलि जाइ किम्हइ तु मरइ अखूटइ।।१३०।।
गज साहणि संचरीय महुणर वेढीय पोयणपुर
वाजीय बूंब न बहकीयउ बाहुबलि नरबर
तसु मंतिसरि भरह राउ संभालीउ सांचु
ए अविमांसिउं किडं काइं आजजि तइं काचुं।।१३१।।
बंधव सिउं नरवीर कांइं इम अंतर दोषइ
लहु बंधव नीय जीव जेम कहि कांइ न लेखइ
तउ मनि चितइ राय किसिउं एय कोइ पराठीउ
ओसरी उवनि वीर राउ रहीउ अवाठीउ।।१३२।।
गय आगलीया गल-गलंत दीजइं हय लास
हुइं हसमस ... भरहराय केरा आवास
एकि निरन्तर वहइं नीर एकि ईं धण आणईं
एक आलसिइं परतणु पांगु आणिउं तृण ताणइं।।१३३।।
एकि ऊतारा करीय तुरीय तलसारे बांधइ
इकि भरडइं केकाण खाण इकि चारे रांधइं
इकि झीलीय नय नीरि तीरि तेतीय बोलावइं
एकि वारू असवार सार साहण वेलावइं।।१३४।।
एकि आकुलीया तापि तरल तडि चडीय झंपावइं
एकि गूडर साबाण सुहड चउरा दिवरावइं
सारीय सामि न सामि आदिजिण पूज पयासइं
कसतुरीय कुंकुम कपूरि चन्दनि वनवासइं।।१३५।।
पूज करींउ चक्ररयण राउ, बइठइ भू जाई
बाजीय संख असंख राउ, आव्या सवि धाई
मंडलवइ मउडुध मु (सु?) हड जीमइ सामंतह
सइं हत्थि दियइ तंबोल कणय कंकण झलकंतह।।१३६।।
वस्तु
दूत—चलीउ, दूत चलीउ, बाहुबलि पासि
भणइ भूर नरवर नि सुणि, भरह राउ पयसेव कीजइ
भारिहिं भीम न कवणि रणि, एउ भिडंत भूय भारि भज्जइ
जइ नवि मुरष एह तणीं, सिरवरि आण वहेसि
सिउं परिकरिइं समर भरि, सहूइ सयरि सहेसि।।१३७।।
राउ बुल्लइ, राज बुल्लइ, सुणि न सुणि दूत
ताय पाय पणमंतय, मुझ बंधव अति खरउ लज्जइ
तु भरहेसर तसतणीय, कहि न कीम अम्हि सेव किज्जइ
भारिइं भूयबलि जुन भिडउं, भुज भुंज भडिवाउ
तउ लज्जइ तिहूयण धणीं, सिरि रिसहेसर ताउ।।१३८।।
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 12)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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