व्यंग्य
व्यंग्य को एक समाजधर्मी साहित्यिक अभिव्यक्ति माना जाता है, जिसका प्रत्यक्ष संबंध मानव-जीवन की विसंगतियों से है और जिसका ध्येय इन विसंगतियों का परिशोधन है। विधा से स्वतंत्र एक शैली के रूप में इसकी उपस्थिति गद्य-पद्य के सभी रूपों में रही है। एक स्वतंत्र साहित्यिक विधा के रूप में इसका उदय भारतेंदु युग में हुआ जहाँ प्रहसनों के रूप में समकालीन समस्याओं पर टिप्पणी की गई। द्विवेदी युग से आगे बढ़ते प्रेमचंद और प्रेमचंदोत्तर युग तक आते इसने एक स्वतंत्र विधा का पूर्ण आकार ग्रहण कर लिया। पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, बेढब बनारसी, हरिशंकर परसाई और श्रीलाल शुक्ल सदृश व्यंग्यकारों ने अपने लेखन से इस विधा को प्रतिष्ठित कराया है।