Font by Mehr Nastaliq Web

व्यंग्य

व्यंग्य को एक समाजधर्मी साहित्यिक अभिव्यक्ति माना जाता है, जिसका प्रत्यक्ष संबंध मानव-जीवन की विसंगतियों से है और जिसका ध्येय इन विसंगतियों का परिशोधन है। विधा से स्वतंत्र एक शैली के रूप में इसकी उपस्थिति गद्य-पद्य के सभी रूपों में रही है। एक स्वतंत्र साहित्यिक विधा के रूप में इसका उदय भारतेंदु युग में हुआ जहाँ प्रहसनों के रूप में समकालीन समस्याओं पर टिप्पणी की गई। द्विवेदी युग से आगे बढ़ते प्रेमचंद और प्रेमचंदोत्तर युग तक आते इसने एक स्वतंत्र विधा का पूर्ण आकार ग्रहण कर लिया। पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, बेढब बनारसी, हरिशंकर परसाई और श्रीलाल शुक्ल सदृश व्यंग्यकारों ने अपने लेखन से इस विधा को प्रतिष्ठित कराया है।

स्वतंत्रता-बाद के सुपरिचित व्यंग्यकार, हास्य-नाटककार और कवि। संगीत और कला-लेखन में भी योगदान।

चस्वराचार्य: छठे दशक में सक्रिय छद्मनामधारी अलक्षित व्यंग्यकार।

समादृत कथाकार। व्यंग्य-लेखन के लिए प्रतिष्ठित।

भारतेंदुयुगीन प्रमुख निबंधकार, गद्यकार और पत्रकार। गद्य-कविता के जनक और ‘प्रदीप’ पत्रिका के संपादक के रूप में समादृत।

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।

शांति मेहरोत्रा: पाँचवें-छठे दशक में सामने आईं कवयित्री-कथाकार। लघुकथा और व्यंग्य विधा में भी योगदान।

नई कविता दौर के कवि और व्यंग्यकार। रचनाओं में में आड़ी-तिरछी लकीरों, चिन्हों के वृहत प्रयोग के लिए चिह्नित।

समादृत लेखक-व्यंग्यकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

Register for free