कवियों की सूची
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योग और वेदांग के ज्ञाता। कहने को संत कवि लेकिन प्रकृति से वैष्णव भक्त। महाराजा छत्रशाल के आध्यात्मिक गुरु।
अंबिकादत्त व्यास
'भारतेंदु मंडल' के कवियों में से एक। कविता की भाषा और शिल्प रीतिकालीन। 'काशी कवितावर्धिनी सभा’ द्वारा 'सुकवि' की उपाधि से विभूषित।
रीतिकालीन नीति काव्यधारा के महत्वपूर्ण कवि। सरल भाषा में लोकव्यवहार संबंधी कुंडलियों के लिए स्मरणीय।
'टट्टी संप्रदाय' से संबद्ध। कविता में वैराग्य और प्रेम दोनों को एक साथ साधने के लिए स्मरणीय।
जयपुर नरेश सवाई प्रतापसिंह ने 'ब्रजनिधि' उपनाम से काव्य-संसार में ख्याति प्राप्त की. काव्य में ब्रजभाषा, राजस्थानी और फ़ारसी का प्रयोग।
दीनदयाल गिरि
रीतिकाल के नीतिकार। भाव निर्वाह के अनुरूप चलती हुई भाषा में मनोहर और रसपूर्ण रचनाओं के लिए प्रसिद्ध।
कृष्ण-भक्त कवि। गोस्वामी हितहरिवंश के शिष्य। सरस माधुर्य और प्रेम के आदर्श निरूपण के लिए स्मरणीय।
गिरिधर कविराय
जीवन के व्यावहारिक पक्ष के आलोक में नीति, वैराग्य और अध्यात्म के प्रस्तुतकर्ता। नीतिपरक कुंडलियों के लिए प्रसिद्ध।
भक्ति-काव्य की कृष्णभक्त शाखा के माधुर्योपासक कवि। 'राधावल्लभ संप्रदाय' के प्रवर्तक।
महापात्र नरहरि बंदीजन
अकबर के दरबारी कवि। भक्ति और नीति संबंधी कविताओं के लिए स्मरणीय।
अठारहवीं सदी के संत कवि। पदों में हृदय की सचाई और भावों की निर्भीक अभिव्यक्ति। स्पष्ट, सरल, ओजपूर्ण और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग।
संत कवि। सरल और सहज भाषा। कविता में दैनिक जीवनानुभवों और उदाहरणों से अपनी बात पुष्ट करने के लिए स्मरणीय।
चरनदास की शिष्या। प्रगाढ़ गुरुभक्ति, संसार से पूर्ण वैराग्य, नाम जप और सगुण-निर्गुण ब्रह्म में अभेद भाव-पदों की मुख्य विषय-वस्तु।
संत रामचरण
श्री रामस्नेही संप्रदाय के प्रवर्तक। वाणी में प्रखर तेज। महती साधना, अनुभूति की स्वच्छता और भावों की सहज गरिमा के संत कवि।
दादूदयाल के प्रमुख शिष्यों में से एक। अद्वैत वेदांती और संत कवियों में सबसे शिक्षित कवि।
सुंदरी कुंवरी बाई
भक्त कवि नागरीदास की बहन। चलती हुई सरल भाषा में भक्ति और वीर काव्य की रचयिता।
भक्तिकालीन संत। कृष्णदास पयहारी के शिष्य और नाभादास के गुरु। रसिक संप्रदाय के संस्थापक। शृंगार और दास्यभाव की रचनाओं के लिए स्मरणीय।
दादू के प्रधान शिष्यों में से एक। दया, उदारता और देह की अनित्यता पर सरल भाषा में लिखे पदों के लिए स्मरणीय।