व्योमेश शुक्ल का परिचय
मूल नाम : व्योमेश शुक्ल
जन्म : 26/06/1980 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश
व्योमेश शुक्ल का जन्म 25 जून, 1980 को वाराणसी में हुआ। बचपन यहीं बीता और एम. ए. तक की पढ़ाई भी यहीं से हुई। लिखने की शुरुआत शहर के जीवन, अतीत, भूगोल और दिक़्क़तों पर एकाग्र निबंधों और प्रतिक्रियाओं के साथ हुई।
उन्होंने इराक़ पर हुई अमेरिकी ज़्यादतियों के बारे में मशहूर अमेरिकी पत्रकार इलियट वाइनबर्गर की किताब ‘व्हाट आई हर्ड अबाउट ईराक़’ का हिंदी अनुवाद किया, जिसे हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘पहल’ ने एक पुस्तिका के तौर पर प्रकाशित किया है। इसके अलावे उन्होंने विश्व-साहित्य से नॉम चोमस्की, हार्वर्ड ज़िन, रेमंड विलियम्स, टेरी इगल्टन, एडवर्ड सईद और भारतीय वाङ्मय से महाश्वेता देवी और के, सच्चिदानंदन के लेखन का भी अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किया है।
अपनी कविताओं के लिए आरंभ से ही चिह्नित होने लगे थे और 2008 में ‘अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार’ और 2009 में ‘भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार’ से सम्मानित हुए। 2009 में ही उनका पहला काव्य-संग्रह ‘फिर भी कुछ लोग’ प्रकाशित हुआ। दूसरा काव्य संग्रह ‘काजल लगाना भूलना’ एक अंतराल के बाद 2020 में प्रकाशित हुआ है। 2020 में ही ‘कठिन का अखाड़ेबाज़ और अन्य निबंध’ शीर्षक निबंध-संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। हाल ही में विष्णु खरे पर एकाग्र उनकी कृति...। का भी प्रकाशन हुआ है।
कविताओं के अतिरिक्त उनकी रुचि आलोचनात्मक लेखन में रही है, जिसके लिए 2011 में ‘रज़ा फ़ाउंडेशन फ़ेलोशिप’ पाया है। उनकी प्रतिष्ठा युवा रंग-निर्देशक और संस्कृतिकर्मी के रूप में भी बढ़ रही है। संस्कृति-कर्म के लिए भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता के ‘जनकल्याण सम्मान’ और नाटकों के निर्देशन के लिए संगीत नाटक अकादेमी के ‘उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ युवा पुरस्कार’ से नवाज़े गए हैं।
उनकी कविताओं के अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ-साथ कुछ विदेशी भाषाओं में हुए हैं। लेखन के साथ-साथ उनका रंग-कर्म जारी है।