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उषा प्रियंवदा

1930 | कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश

नई कहानी के दौर की चर्चित कहानीकार।

नई कहानी के दौर की चर्चित कहानीकार।

उषा प्रियंवदा का परिचय

 

नई कहानी के दौर की चर्चित महिला कहानीकारों की त्रयी में एक। अन्य दो, मन्नू भंडारी और कृष्णा सोबती हैं।

उषा प्रियंवदा का जन्म 24 दिसंबर सन 1931 को इलाहाबाद में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की और बाद एमीन अँग्रेज़ी में ही पीएचडी हुईं। मिरांडा हाउस, दिल्ली और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन की। तत्पश्चात, फुलब्राइट स्कालरशिप पर पोस्टडॉक करने अमरीका के ब्लूमिंगटन, इंडियाना गईं। वहीं विस्कांसिन विश्वविद्यालय, मैडीसन के दक्षिण एशियाई विभाग में प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुईं और वहीं रहती हैं। 

वापसी और ज़िंदगी और गुलाब के फूल उनकी अतिचर्चित कहानियाँ हैं तो पचपन खंभे, लाल दीवारें उनका बहुचर्चित उपन्यास है। 
उषा प्रियंवदा की रचनाओं में संयुक्त परिवार का विघटन दिखता है तो आधुनिक जीवन की ऊब और अकेलेपन की स्थिति को भी चिन्हित किया जाता है। 

मुख कृतियाँ
उषा जी के कथा साहित्य में शहरी परिवारों के बड़े ही अनुभूति प्रवण चित्र हैं, और आधुनिक जीवन की उदासी, अकेलेपन, ऊब आदि का अंकन करने में उन्होंने अत्यंत गहरे यथार्थबोध का परिचय दिया है। उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-

कहानी संग्रह
'ज़िंदगी और गुलाब के फूल'
'एक कोई दूसरा'
'मेरी प्रिय कहानियां'

उपन्यास
'पचपन खंभे'
'लाल दीवारें'
'रुकोगी नहीं राधिका'
'शेष यात्रा'
'अंतर्वंशी'

सम्मान और पुरस्कार
2007 में केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित।

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