उदयराज जती के दोहे
स्वारथ प्यारो कवि उदै, कहै बड़े सो साँच।
जल लेवा के कारणे, नमत कूप कूँ चाँच॥
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अति न करौ कहि कवि उदै, अति कर रावन कंस।
आप गयौ जानत सकल, गयौ संपूरन बंस॥
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आछा खावै सुख सुवै, आछा पहिरे सोइ।
अति आछो रहणी रहै, मरै न बूढ़ा होइ॥
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उदै राज खेलौ हँसौ, मनिखा देही सार।
इह सगपण जिवतन मिलण, बहुरि न दूजी बार॥
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सज्जन मिलण समान कछु, उदै न दूजी बात।
सेत पीत चूनौ हरद, मिलत लाल ह्वै जात॥
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उदै सीख कहि क्यों दिए, सीख दिया दुख होइ।
अपनी करनी चालणी, बुरी न देखै कोइ॥
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सूर सुख्ख अरु दुख्ख को, दोउ गिणो विचार।
जेतौ जुग भइँ चाँदणों, ते तौ पख अंधार॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere