सुदीप्ति की संपूर्ण रचनाएँ
संबंधित ब्लॉग
साधारण का सहज सौंदर्य
‘‘जिस शैलजा से तुम यहाँ पहली बार मिल रहे हो मैं उसी शैलजा को ढूँढ़ने आई हूँ, सामने होकर भी मिलती नहीं है, अगर तुम्हें मुझसे पहले मिल जाए न, तो सँभालकर
By सुदीप्ति | 09 जनवरी 2024
स्मृति-छाया के बीच करुणा का विस्तार
पूर्वकथन किसी फ़िल्म को देख अगर लिखने की तलब लगे तो मैं अमूमन उसे देखने के लगभग एक-दो दिन के भीतर ही उस पर लिख देती हूँ। जी हाँ! तलब!! पसंद वाले अध
By सुदीप्ति | 17 मई 2023
विछोह की ख़ूबसूरती अधूरेपन में है
रज़िया सुल्तान में जाँ निसार अख़्तर का लिखा और लता मंगेशकर का गाया एक यादगार गीत है : ‘‘ऐ दिल-ए-नादाँ...’’, उसके एक अंतरे में ये पंक्तियाँ आती हैं :
By सुदीप्ति | 20 सितम्बर 2023