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सोमप्रभ सूरि

समय : 13वीं सदी। जैनाचार्य। गद्य-पद्यमय संस्कृत-प्राकृत काव्य ‘कुमारपाल प्रतिबोध’ के रचयिता।

समय : 13वीं सदी। जैनाचार्य। गद्य-पद्यमय संस्कृत-प्राकृत काव्य ‘कुमारपाल प्रतिबोध’ के रचयिता।

सोमप्रभ सूरि की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 10

माणि पणट्ठइ जइ तणु, तो देसडा चइज्ज।

मा दुज्जन-कर-पल्लविहिँ, दंसिज्जंतु भमिज्ज॥

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वेस विसिट्ठह वारिअइ, जइ वि मणोहर-गत्त।

गंगाजल-पक्खालिअवि, सुणिहि कि होइ पवित्त॥

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रिद्धि विहूणइ माणुसह कुणइ कुवि संमाणु।

सउणिहि मुच्चउ फल रहिउ तरुवरु इत्थु पमाणु॥

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चूडउ चुन्नी होइसइ मुद्धि कवोलि निहत्तु।

सासानलिण झलक्कियउं वाह-सलि-संसित्तु॥

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पिउ हउं थक्किय सयलु दिणु तुह विरहरग्गि किलंत।

थोडइ जलि जिम मच्छलिय तल्लोविल्लि करंत॥

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