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श्री हठी

श्रीहित हरिवंश की शिष्य-परंपरा के कला-कुशल और साहित्य-मर्मज्ञ भक्त कवि।

श्रीहित हरिवंश की शिष्य-परंपरा के कला-कुशल और साहित्य-मर्मज्ञ भक्त कवि।

श्री हठी के दोहे

अज सिव सिद्ध सुरेस मुख, जपत रहत निसिजाम।

बाधा जन की हरत है, राधा राधा नाम॥

कीरति कीरति कुँवरि की, कहि-कहि थके गनेस।

दस सत मुख बरनन करत, पार पावत सेस॥

राधा राधा कहत हैं, जे नर आठौ जाम।

ते भवसिंधु उलंघि कै, बसत सदा ब्रजधाम॥

राधा राधा जे कहैं, ते परैं भव-फंद।

जासु कन्ध पर कमलकर, धरे रहत ब्रजचंद॥

श्री बृषभानु-कुमारि के, पग बंदौ कर जोर।

जे निसिबासर उर धरै, ब्रज बसि नंद-किसोर॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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