शानी का परिचय
मुस्लिम समाज के भूमिगत हाशिये को हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में स्थापित करने वाले हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार शानी (मूल: गुलशेर ख़ाँ) का जन्म 16 मई, 1933 को जगदलपुर, अब छत्तीसगढ़, भारत में हुआ था। पूरे उत्तर भारत के जगरमगर हिंदी साहित्यिक परिदृश्य से दूर जगदलपुर जैसे एक छोटे शहर से साहित्य में आए। उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सूचना और प्रकाशन निदेशालय से अपने कैरियर की शुरुआत की। उन्हें जगदलपुर से ग्वालियर और बाद में भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया। 1972 में उन्हें मध्य प्रदेश साहित्य परिषद का सचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने ‘साक्षात्कार’ पत्रिका का शुभारंभ किया। 1978 में अपने पद से मुक्त होने पर, वे नई दिल्ली गए, और प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स के रविवार्ता का संपादन किया। 1980 में, उन्हें साहित्य अकादमी की हिंदी पत्रिका “समकालीन भारतीय साहित्य” का संस्थापक संपादक नियुक्त किया गया। वह 1991 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने 1993-94 में पुन: शुरू की गई हिंदी पत्रिका ‘कहानी’ का संपादन किया। गुर्दे की गंभीर बीमारी के बाद 10 फरवरी, 1995 को उनका निधन हो गया।
शानी ने अपने पुरस्कृत उपन्यास 'काला जल' के साथ हिंदी उपन्यास लेखन में एक नई प्रवृत्ति की शुरुआत की, जिसे उन्होंने 28 साल की उम्र में लिखा था। उन्होंने समकालीन परिस्थितियों पर हिंदी में कई कहानियाँ लिखीं। उन्होंने हिंदी कहानी लेखन के ‘विषयगत’ रूढ़ियों से हटकर हिंदी साहित्य में अपने लिए एक नया स्थान बनाया। एक मायने में हिंदी साहित्य में एक बड़े ख़ालीपन को भरने का श्रेय उन्हें जाता है।
प्रकाशित कृतियाँ
कहानी संग्रह-
बबूल की छाँव -1958
डाली नहीं फूलती -1960
छोटे घेरे का विद्रोह -1964
एक से मकानों का नगर -1971
युद्ध -1973
शर्त का क्या हुआ? -1975
बिरादरी तथा अन्य कहानियाँ -1977
सड़क पार करते हुए -1979
जहाँपनाह जंगल -1984
चयनित कहानियों का संग्रह-
मेरी प्रिय कहानियाँ -1976
प्रतिनिधि कहानियाँ -1985
दस प्रतिनिधि कहानियाँ -1997
कहानी समग्र-
सब एक जगह (दो भागों में) -1981
उपन्यास-
कस्तूरी -1960, पत्थरों में बंद आवाज़ -1964, काला जल -1965, एक लड़की की डायरी-1980, नदी और सीपियाँ -1970, फूल तोड़ना मना है-1980, साँप और सीढ़ी -1983
संस्मरण-
शालवनों का द्वीप -1966
निबंध संग्रह-
एक शहर में सपने बिकते हैं -1984
नैना कभी न दीठ -1993