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सविता सिंह

1962 | आरा, बिहार

सुपरिचित कवयित्री और आलोचक। हिंदी कविता में स्त्रीवादी वैचारिकी के निर्माण में अहम भूमिका।

सुपरिचित कवयित्री और आलोचक। हिंदी कविता में स्त्रीवादी वैचारिकी के निर्माण में अहम भूमिका।

सविता सिंह का परिचय

जन्म : 05/02/1962 | आरा, बिहार

समकालीन कवयित्री सविता सिंह का जन्म 5 फ़रवरी, 1962 को बिहार के आरा में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में शोध के बाद मैक्गिल विश्वविद्यालय, मांट्रियल (कनाडा) में साढ़े चार वर्ष तक शोध एवं अध्यापन कार्य किया। कनाडा में रिहाइश के बाद दो वर्ष का ब्रिटेन प्रवास और फ़्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, हॉलैंड और मध्यपूर्व तथा अफ़्रीका के देशों की यात्राएँ जिस दौरान विशेष व्याख्यान दिए। इसके उपरांत दिल्ली विश्विद्यालय और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्विद्यालय (इग्नू) में प्राध्यापन किया और इग्नू के स्कूल ऑफ़ जेंडर एवं डेवलपमेंट स्टडीज़ की निदेशक रही हैं।

कविता में उनका प्रवेश नवें दशक में हुआ जहाँ स्त्री-अभिव्यक्ति के अधिक ठोस आशय के साथ उन्होंने सामूहिक विमर्श में अपना योगदान किया। समकालीन हिंदी कविता में स्त्री-वैचारिकी के निर्माण में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है।  बक़ौल विष्णु नागर—‘‘सविता सिंह की कविता यह एहसास सबसे पहले कराती है कि यह एक स्वाधीन होती स्त्री की कविता है, न कि ठेठ हिंदी के ठाठ की कविता। लेकिन यह स्वाधीन स्त्री भारतीय समाज की स्थिति से बेख़बर नहीं है, बल्कि उसी में बन रही स्त्री है।’’ इस विमर्श में उनकी स्वयं की प्रतिबद्धता इन शब्दों में अभिव्यक्त हुई है—‘‘मुझे वह संसार चाहिए जो एक स्त्री-कवि का संसार हो सकता है। यह वह संसार नहीं है जिसे हम बहुत ऑब्जेक्टिविली जीते हैं। एक बहुत तरल और नीला-नीला-सा वह संसार है। उस संसार में उतरना यानी एक ऐसे अँधेरे में उतरना जिससे आपका परिचय अवचेतन के स्तर पर है। कविता के लिए वह बहुत उर्वर प्रदेश है। उसे व्यक्त करने के लिए एक दूसरी ही भाषा दरकार थी—एक उपयुक्त भाषा। मैं यह तो नहीं कहूँगी कि मैंने इस भाषा को गढ़ा, लेकिन यह ज़रूर कहूँगी कि मैंने इस भाषा का अन्वेषण किया।’’ उनकी कविताओं का स्वर स्त्रीवादी वैचारिकी तक ही एकाग्र नहीं छूट जाता बल्कि एक स्त्री की निगाह से दुनिया के विमर्शों में भी बराबरी से शिरकत करता है।   

सविता सिंह के तीन कविता-संग्रह ‘अपने जैसा जीवन’ (2001), ‘नींद थी और रात थी’ (2005), और ‘स्वप्न समय’ (2013) प्रकाशित हैं। ’रोविंग टुगेदर’ (2008) उनका द्विभाषिक (अंग्रेज़ी-हिंदी) संकलन है।  उनके संपादन में ’सेवेन लीव्स, वन ऑटम’ प्रकाशन हुआ है जिसमें विश्व की सात कवयित्रियों की प्रतिनिधि कविताएँ शामिल हैं। 

वह हिंदी अकादेमी पुरस्कार और रज़ा सम्मान से नवाज़ी गई हैं।   

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