संत सालिगराम के दोहे
पिया मेरे और मैं पिया की, कुछ भेद न जानो कोई।
जो कुछ होय सो मौज से होई, पिया समरथ करें सोई॥
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चुपके-चुपके बैठकर, करो नाम की याद।
दया मेहर से पाइयो, तुम सतगुरु परसाद॥
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जो सुख नहिं तू दे सके, तो दुख काहू मत दे।
ऐसी रहनी जो रहे, सोई शब्द रस ले॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere