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संत पीपा

1359 - 1420 | झालावाड़, राजस्थान

संत पीपा की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 98

उठ भाग्यो वाराणसी, न्हायो गंग हजार।

पीपा वे जन उत्तम घणा, जिण राम कयो इकबार॥

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सगुण मीठौ खांड सौ, निरगुण कड़वौ नीम।

पीपा गुरु जो परसदे, निरभ्रम होकर जीम॥

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जीव मारि जीमण कर, खाताँ करै बखाण।

पीपा परतखि देखि ले, थांली माँहि मसाण॥

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पीपा पाप कीजिये, अलगौ रहिये आप।

करणी जासी आपणी, कुण बैटौ कुण बाप॥

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हाथाँ सो उधम करै, मुख सों उचरे नाम।

पीपा साधां रो धरम, रोम रमारे राम॥

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सबद 33

सोरठा 1

 

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