संजय कुंदन का परिचय
7 दिसंबर 1969 को पटना में पैदा हुए संजय कुंदन छात्र जीवन से ही थियेटर और साहित्य-लेखन से जुड़ गए थे। 18 वर्ष की आयु में ‘अंतत:’ नामक अपना नाट्य दल बनाया और बिहार के शहरों-गाँवों में घूम-घूमकर नुक्कड़ और मंच-नाटक किए। मंचन के लिए स्वयं कई नाटक लिखे और अनेक में अभिनय और निर्देशन किया। इसके उपरांत उनका झुकाव साहित्य-लेखन की ओर हुआ और अब तक उनके तीन कविता-संग्रह ‘काग़ज़ के प्रदेश में, ‘चुप्पी का शोर’ और ‘योजनाओं का शहर’, दो कहानी-संग्रह ‘बॉस की पार्टी’ और ‘श्यामलाल का अकेलापन’ और दो उपन्यास ‘टूटने के बाद’ और ‘तीन ताल’ प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के लिए उन्हें भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, हेमंत स्मृति सम्मान और विद्यापति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उपन्यास ‘टूटने के बाद’ पर कई विश्वविद्यालयों के छात्रों ने लघु शोध-प्रबंध लिखे हैं।
इसके साथ ही लघु फिल्म ‘उजागिर महतो’ का निर्देशन और ‘इट्स डिवेलपमेंट स्टुपिड’ का पटकथा लेखन किया है। उनकी रचनाएँ मराठी, पंजाबी, उर्दू और अँग्रेज़ी में अनूदित हुई हैं। उन्होंने जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास ‘एनिमल फॉर्म’ और ज़ेवियर मोरो के उपन्यास ‘पैशन इंडिया’ का अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद किया है।
आजीविका के लिए उन्होंने पत्रकारिता का पेशा अपनाया जिसकी शुरुआत धनबाद के ‘आवाज़’ से हुई। फिर पाटलिपुत्र टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा और जनसत्ता से होते हुए अब नवभारत टाइम्स में कार्यरत हैं’। चुप रहकर एक जासूस की तरह समाज के व्यवहार पर नज़र रखना, पत्नी और बेटे के साथ समय बिताना और देसी-विदेशी व्यंजनों का स्वाद लेना उन्हें पसंद है। कविताओं के विषय में वह कहते हैं कि कविता उनका सामाजिक-राजनीतिक वक्तव्य भी है—‘‘कविताओं के ज़रिए मैं उनसे संवाद करना चाहता हूँ जो जीवन को देखते हैं मेरी ही तरह और उसे बदलने के लिए बेचैन होते हैं मेरी ही तरह’’।