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रूपसरस

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध भक्त-कवि।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध भक्त-कवि।

रूपसरस की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 6

गलबहियाँ कब देखिहौं, इन नयमन सियराम।

कोटि चन्द्र छबि जगमगी, लज्जित कोटिन काम॥

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हँस बीरी रघुबर लई, सिय मुख पंकज दीन।

सिया लीन कर कंज में, प्रीतम मुख धरि दीन॥

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रघुबर प्यारी लाड़ली, लाड़लि प्यारे राम।

कनक भवन की कुंज में, बिहरत है सुखधाम॥

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हे सीते नृप नंदिनी, हे प्रीतम चितचोर।

नवल बधू की वीटिका, लीजे नवल किशोर॥

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रंग रंगीली लाड़ली, रंग रंगीलो लाल।

रंग रंगीली अलिन में, कब देखौं सियलाल॥

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