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रसिकबिहारी

1700 - 1765 | किशनगढ़, राजस्थान

वास्तविक नाम ‘बनी-ठनी’। कविता में शृंगार का पुट। नायिका-भेद के लिए स्मरणीय।

वास्तविक नाम ‘बनी-ठनी’। कविता में शृंगार का पुट। नायिका-भेद के लिए स्मरणीय।

रसिकबिहारी का परिचय

उपनाम : 'बनी ठनी'

जन्म :किशनगढ़, राजस्थान

रसिक बिहारी या बनीठनी हिन्दी साहित्य के यशस्वी कवि महाराजा नागरीदासजी की परिचारिका और प्रेमिका थी। राजस्थान की चित्रकला के इतिहास में बनी ठनी का अन्यतम स्थान है। नागरीदास के आदेश पर निहालचंद द्वारा बनाई गई रसिक बिहारी की पेंटिंग अपने रंग संयोजन के कारण ‘राजस्थान की मोनालिसा’ कही जाती है। बनी ठनी नागरीदास की अनन्य प्रेमिका थी। नागरीदासजी के संसर्ग से इनके हृदय में कृष्ण के प्रति भक्ति-भावना और काव्य-रचना का भाव जागृत हुआ। कवयित्री का जन्म वि. सं. 1757 में और देहावसान वि. सं. 1822 आषाढ़ की पूर्णिमा को वृन्दावन में हुआ।

रसिक बिहारी ने कितने ग्रंथ लिखे, इस संबंध में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। परन्तु इनके अनेक फुटकर पद प्रचुर परिमाण में मिलते हैं। अपनी रचनाओं में कवयित्री ने अपना नाम 'रसिकबिहारी’ और ‘बनीठनी' लिखा है। कृष्ण के संयोग और वियोग भाव से भरे बनीठनी के पद एक से एक उत्कृष्ट हैं। शृंगार रस पदों की आत्मा है। कृष्ण-भक्ति-भावना का पुनीत प्रवाह उसमें तरंगित होता है।

कवयित्री की भाषा राजस्थानी है। राजस्थानी में शृंगार के पद बनीठनी ने बहुत भावपूर्ण और सुन्दर लिखे हैं। भाषा, छन्द, राग-रागिनियाँ और शब्द-शास्त्र पर कवयित्री का असाधारण अधिकार है। कला-पक्ष और भाव-पक्ष भी बनीठनी की रचनाओं का उत्तम बन पाया है।

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