रामरसरंगमणि के दोहे
बंदौं दूलह वेष दुति, सिय दुलहिनि युत राम।
गौरि श्याम रसरंगमणि, जन-मन पूरन काम॥
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बंदौं सिंहासन लसे, दुलहिनि दूलह चारि।
पूजहिं अंब कदंब लखिं, रसरंगहु बलिहारि॥
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बंदौं सीताकांत सुख, रस शृंगार स्वरूप।
रसिकराज रसरंगमणि, सखा सुबंधु अनूप॥
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बन्दौं भरताग्रज मधुर, प्रेम सख्य रस रूप।
कृपासिंधु रसरंगमणि, बंधु अखिल रस भूप॥
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बंदौं बर दुलहिनि सकल, आए अवध दुआर।
मुदित मातु परिछन करहिं, सुख रसरंग अपार॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere