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रामअवध द्विवेदी

1907 - 1971 | गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

रामअवध द्विवेदी का परिचय

मूल नाम : रामअवध द्विवेदी

जन्म :गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

निधन : 19/10/1971

पाश्चात्य आलोचना सिद्धांत को हिंदी में सरल करने वाले आलोचक डॉ० द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 17 जुलाई सन्‌ 1907 को हुआ था। आप हिंदी के पुराने साहित्यकार श्री मन्‍नन द्विवदी गजपुरी के कनिष्ठ भ्राता थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा देवरिया में हुई और बाद में आप गोरखपुर मे पढ़े थे। गोरखपुर के बाद आपने डी० ए० वी० कॉलेज कानपुर से बी० ए० करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में एम० ए० करने के साथ-साथ एल-एल० बी० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय मे ही अँग्रेज़ी के प्राध्यापक हो गए। आपने जहाँ अँग्रेज़ी साहित्य का गहन अध्ययन किया वहीं हिंदी-साहित्य-समीक्षा की दिशा में भी आप सक्रिय रहे। कुछ दिन तक आप देवरिया के 'संत विनोबा डिग्री कॉलेज' के प्रधानाचार्य भी रहे। अध्यापन का कार्य करते हुए ही आपने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से डी०लिट्‌० को उपाधि प्राप्त की। 

आपने हिंदी में पाश्चात्य समीक्षा के सिद्धांतों पर प्रकाश डालने वाले ग्रंथों के अभाव को ध्यान रखते हुए इसकी छतिपूर्ति में संलग्न हो गए। 
आपकी प्रमुख प्रकाशित कृतियों मे 'आविष्कारों की कहानियाँ’ (953), 'हमारे भोजन की समस्या’ (1953), 'हिंदी साहित्य के विकास की रूपरेखा' (1956), 'साहित्य रूप’ (1960), ‘अँग्रेज़ी भाषा और साहित्य' तथा 'साहित्य-सिद्धांत' (1962) प्रमुख है। इन पुस्तकों के अतिरिक्त आपके अनेक समीक्षापरक निबंध हिंदी की विभिन्‍न पत्रिकाओं मे प्रकाशित हुए थे। हिंदी की समीक्षा-प्रधान त्रैमासिक "आलोचना" से प्रकाशित आपके निबंघों में 'साहित्य के उपकरण', 'यूनानी नाट्य-शास्त्र मे ट्रेजेडी का स्वरूप’ ,'काव्य में प्रतीक विधान' तथा 'स्वच्छंदतावाद का परवर्ती काव्य-चिन्तन' आदि प्रमुख है।

आपने अँग्रेज़ी में भी अनेक ग्रंथों की रचना की। 'डायनामिक्स आफ प्लॉटमेकिंग' (1941), ‘ऐन्थोलॉजी ऑफ़ इंग्लिश प्रोज' (1941), 'हिंदी लिट्रेचर' (1953), 'वन एक्ट प्ले', 'लिटरेरी-क्रिटिसिज्म' तथा 'ए क्रिटिकल सर्वे आफ हिंदी लिट्रेचर' आदि उल्लेखनीय है। ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा' की ओर से प्रकाशित होने वाली अँग्रेज़ी की मासिक पत्रिका ‘हिंदी रिव्यू" का आपने अनेक वर्ष तक सफलतापूर्वक संपादन किया।

आपकी नेत्र-ज्योति धीरे-धीरे क्षीण होने लगी। पहले एक आँख की ज्योति गई और फिर सन्‌ 1948 में दूसरी आँख की भी चली गई। इस कारण आपके लेखन की गति में अवरोध आ गया। 

ह्रदयघात के कारण 19 अक्तूबर सन्‌ 1971 को आपका निधन हुआ।

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