राजकमल चौधरी का परिचय
अकविता दौर के प्रमुख कवि-कथाकार राजकमल चौधरी हिंदी साहित्यिक परिदृश्य के प्रतिभाशाली, विवादास्पद और रोचक किरदार के रूप में याद किए जाते हैं। जन्मतिथि और जन्म स्थान को लेकर कुछ विवादों के साथ आम तौर पर माना जाता है कि उनका जन्म 13 दिसंबर 1929 को उनके ननिहाल रामपुर हवेली, ज़िला मधेपुरा, बिहार में हुआ था। उनके नाम और नाम प्रयोग को लेकर भी कई कथाएँ प्रचलित हैं। उन्होंने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि पिता ने तीनों भाइयों को वीर, धीर, सुधीर का नाम दिया था जबकि उनके स्कूली दोस्त उन्हें फूल बाबू पुकारते थे। गया की वेश्याएँ उन्हें राजा और फूल राजा पुकारती थीं। स्कूली सर्टिफ़िकेट में उनका नाम मणींद्र नारायण था। राजकमल चौधरी उनका साहित्यिक उपनाम था जिस तक पहुँचते मणींद्र किरण, पुष्पतीर्थ, स्वर्णफूल, पुष्पराज, मणींद्र राजकमल और फिर राजकमल की नाम-यात्राओं से गुज़रे थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने मणि मधुसूदन दास, मासूम अजीमाबादी, अनामिका चौधरी, वनलता सिंह, शशि चौधरी आदि छद्म नामों से भी लेखन किया।
हिंदी कविता में राजकमल चौधरी को उनके कथ्य और काव्य तकनीक के लिए जाना जाता है। वे शब्दों को इतर तरीक़े से बरतने के शौक़ीन थे जिन पर उनके निजत्व की एक छाप नज़र आती है। उन्होंने अपनी कविताओं और गद्य के लिए जो भाषा विकसित की वह ताज़ा और आकर्षक थी। उनकी कविताओं पर देह और राजनीति पर अधिक एकाग्र होने का आरोप तो लगाया जाता है, लेकिन उनमें व्यक्त संत्रास, घुटन, अकेलेपन, आशंका, विसंगति, फूहड़ता, विद्रूपता आदि से ही समकालीन जीवन और यथार्थ की अभिव्यक्ति हो पाती है।
अकूत लेखन प्रतिभा के धनी राजकमल चौधरी ने मैथिली और हिंदी में लगभग 250 कविताएँ, 92 कहानियाँ, 55 निबंध, 8 उपन्यास, 3 नाटक और कई लेख लिखे हैं। ‘कंकावती’, ‘विचित्रा’, ‘इस अकालबेला में’, ‘ऑडिट रिपोर्ट’ आदि में उनकी कविताओं का संकलन हुआ है जबकि ‘मछली जाल’ और ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ उनकी कहानियों के संग्रह हैं। ‘मछली मरी हुई’, ‘देहगाथा’, ‘नदी बहती थी’, ‘शहर था शहर नहीं था’, ‘अग्निस्नान’, ‘बीस रानियों के बाइस्कोप’, ‘एक अनार सौ बीमार’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। उनके समस्त लेखन का संग्रह राजकमल चौधरी रचनावली के 8 खंडों में किया गया है।
19 जून 1967 को महज 37 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।