1929 - 1967 | महिषी, बिहार
अकविता दौर के कवि-कथाकार और अनुवादक। जोखिमों से भरा बीहड़ जीवन जीने के लिए उल्लेखनीय।
‘तत्काल’ के सिवा और कोई काल चिंतनीय नहीं है।
प्रकृति, आदर्श, जीवन-मूल्य, परंपरा, संस्कार, चमत्कार—इत्यादि से मुझे कोई मोह नहीं है।
मैं शरीर में रहकर भी शरीर-मुक्त, और समाज में रहकर भी समाज-मुक्त हूँ।
जानने की कोशिश मत करो। कोशिश करोगे तो पागल हो जाओगे।
परिश्रम और प्रतिभा आप-ही-आप आदमी को अकेला बना देती है।
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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