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रघुवीर चौधरी

1938 | गांधीनगर, गुजरात

समादृत गुजराती उपन्यासकार, कवि, आलोचक और स्तंभकार। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत गुजराती उपन्यासकार, कवि, आलोचक और स्तंभकार। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

रघुवीर चौधरी की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 2

 

उद्धरण 85

प्रेम के भ्रम में भी प्रेम की आंशिक स्वीकृति होती है। शायद प्रेम की समग्रता को स्वीकार करना बहुत दुर्लभ है।

प्रेम नाम का कोई शाश्वत सूत्र नहीं है जो जीवन भर अपनी उपस्थिति का यक़ीन दिलाता रहे।

पुरुष को स्त्री को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उसने उसे परम रहस्य कहकर पुरस्कृत किया; लेकिन वास्तव में घमंड के बहाने उसके अधिकार की उपेक्षा की गई।

मनुष्य के लालच और आत्मघात का ज़हर धरती के केंद्र में काफ़ी जमा हो चुका है।

शांति और मौन का अर्थ है—शोर का अभाव, यानी वास्तव में एक बेचैन करने वाली शांति।

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