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प्रताप कुंवरि बाई

1817 - 1886 | जोधपुर, राजस्थान

रीतिकाल की भक्त कवयित्री। कविता में परंपरागत आदर्श का निरूपण।

रीतिकाल की भक्त कवयित्री। कविता में परंपरागत आदर्श का निरूपण।

प्रताप कुंवरि बाई का परिचय

प्रताप कुंवरी का जन्म जोधपुर के जाखण गांव निवासी भाटी गोयन्द दास के घर 1817 ई. में हुआ। बचपन में ही उनकी बुद्धि बड़ी विलक्षण और कुशाग्र थी। बड़ी होने पर पिता ने इनके गुणों के अनुकूल पति की खोज की। सौभाग्य से जोधपुर के अधिपति मानसिंहजी के साथ प्रताप कुंवरी का पाणिग्रहण हुआ। मानसिंह विद्यानुरागी थे, इसलिए विवाह के बाद प्रताप कुंवरी के कवित्व को बहुत संबल मिला। इनके लिखे ग्रंथों में ‘ज्ञान सागर’, ‘ज्ञान प्रकाश’, ‘प्रताप पचीसी’, ‘प्रेम सागर’, ‘रामचंद्र नाम महिमा’, ‘रामगुण सागर’, ‘रघुवर स्नेह लीला’, ‘राम प्रेम सुखसागर’, ‘राम सुजस पचीसी’, ‘पत्रिका 1923 चैत्र बदी 11 की’, ‘रघुनाथजी के कवित्त’, ‘भजन पद हरिजस’, ‘प्रताप विनय’ और ‘हरिजस गायन’ आदि प्रमुख हैं।

प्रताप कुंवरी के ग्रंथ यद्यपि विविध विषयक हैं परन्तु अधिकतर ग्रंथ राम के विविध चरित्रों पर ही लिखे गए हैं। राम-चरित्र के वर्णनीय विषय झूला वर्णन, राम विवाह, राम वनगमन, रूप वर्णन, सीता हरण, राम का पुनः अयोध्या गमन, और राम का राज्याभिषेक है। कहीं-कहीं फुटकर पदों में मानसिंहजी की रचना-शैली का भी प्रभाव लक्षित होता है। इस प्रकार के पदों में निर्गुण भक्ति की भावाभिव्यक्ति हुई है और ज्ञान-गुलाल, अनहद नाद, सुरत, कायान्तर जैसे निर्गुण विषयक भक्ति के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। प्रताप कुंवरी के पदों में शान्त रस की शीतल सलिला सर्वथा प्रवाहित होती है। हिंडोल, विवाह के पदों में जहाँ शृंगार है, वहाँ राम-वनगमन-विषयक पदों में करुण रसधारा भी उसी वेग से प्रवाहमान हुई है।

इनकी भाषा सरल, सुबोध, सरस राजस्थानी है। प्रसाद गुण शैली में लिखे कवयित्री के भजनों का जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर के जन-जीवन में आज भी प्रचार-प्रसार है। हज़ारों स्त्री-पुरूष प्रताप कुंवरी के भजनों को गा कर अलौकिक आनन्द प्राप्त करते हैं। शब्दों का चुनाव और मुहावरे का प्रयोग करने में भी कवयित्री बड़ी कुशल प्रतीत होती है। छन्द, अलंकार तथा राग-रागिनियों का अच्छा ज्ञान होने के कारण प्रताप कुंवरी के पदों में लालित्य आ गया है। अलंकारों में उपमा, रूपक, अनुप्रास का विशेष प्रयोग हुआ है।

प्रताप कुंवरी का देहावसान 1886 ई. को हुआ। परन्तु उनकी राम-भक्ति की सौरभ दिगदिगन्त में प्रसारित हुई जो आज भी अमर है, अक्षुण्ण है।

प्रताप कुंवरी के विषय में डॉ. सावित्री सिन्हा ने जो कल्पित मंतव्य स्थापित किए हैं, उनके विषय में श्री अक्षयचन्द्र शर्मा ने लिखा है कि ‘डॉ. सावित्री सिन्हा का 'राम काव्य' रचयित्री के रूप में प्रतापकुंवर का स्थान साधारण कवियों से नीचे रहेगा’- मन्तव्य हड़बड़ाहट सूचित करता है। लगता है, उन्होंने प्रतापकुंवर के समस्त पदों का धैर्य के साथ अध्ययन नहीं किया, नहीं तो इस प्रकार की अधूरी, अर्द्धचर्चित और भ्रांतिमूलक बातें नहीं लिखतीं।' वस्तुतः श्री ओझाजी के शब्दों में हमें यहाँ यही कहना पड़ता है कि भटियाणी राणी प्रतापकुंवर विदूषी होने के साथ ही उच्च कोटि की कवयित्री भी थी।

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