पद्मजा घोरपड़े हिंदी की व्याख्याता, एसोसिएट प्रोफ़ेसर, विभागाध्यक्ष, प्रभारी प्राचार्य के रूप में कार्यरत (1981 से 2017) रही हैं। उनकी विभिन्न विधाओं में चालीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनमें चार कविता-संग्रह, दो कहानी-संग्रह सहित पत्रकारिता, जीवनी, समीक्षा, हिंदी-मराठी-हिंदी अनुवाद और संपादन की पुस्तकें शामिल हैं। वह ‘सर्जना : साहित्य एवं कला मंच’ की संस्थापक-सचिव (1986 से 2000) भी रहीं। वह फ़िलहाल ‘परिक्रमा’ आधारभूत सामाजिक सेवाकार्य न्यास की स्थापना एवं न्यास की प्रमुख न्यासी, अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।