मनोज कुमार झा का परिचय
मनोज कुमार झा का जन्म 1970 में बिहार के दरभंगा ज़िले के शंकरपुर ग्राम में हुआ। युवपन में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताओं और लेखों से उनका परिचय बनने लगा था। 2008 में भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार पाने के बाद उनकी कविताओं पर ठहर कर ध्यान दिए जाने की शुरुआत हुई। पहला कविता-संग्रह ‘तथापि जीवन’ प्रकाशित होने में फिर भी कुछ देर हुई और वह 2012 में प्रकाशित हो हिंदी पाठकों के सम्मुख आया। वह युवा पीढ़ी के कुछेक बहुप्रशंसित कवियों में से एक हैं।
उनके कवि और काव्य-स्वर के प्रसंग में कहा गया है कि कुछ ऐसे काव्य-स्वर भी होते हैं जिन्हें समझने के लिए भारमुक्त होने की ज़रूरत होती है। इस यात्रा में अगर ऐसा न किया जाए, तब यात्रा का मूल प्रभाव खो जाता है। उनकी कविताएँ आस्वाद के इसी धरातल की कविताएँ हैं। ये सामान्य में अलग से सामान्य हैं और असाधारण में अलग से असाधारण। इस तरह ये हर कविता की तरह और हर कविता से अलग हैं। उन्हें उनकी कविताओं में बरती गई भाषा के लिए भी अलग से चिह्नित किया जाता है जिसमें मिट्टी के रंग भी हैं तो तत्समता की आमद भी आवश्यकतानुसार होती रहती है।
उनका दूसरा काव्य-संग्रह ‘कदाचित अपूर्ण’ 2018 में प्रकाशित हुआ। कविताओं के अतिरिक्त उन्होंने अनुवाद में रुचि से कार्य किया है जिनमें मुख्यतः चोमस्की, जेमसन, ईगलटन, फूको, ज़िज़ेक आदि विचारकों के विमर्श-लेखों के अनुवाद शामिल हैं। उन्होंने एजाज़ अहमद की किताब ‘रिफ़्लेक्शन ऑन आवर टाइम्स’ का हिंदी-अनुवाद भी किया है।
साहित्यिक-वैचारिक लेखन के अलावे उन्होंने ‘विक्षिप्तों पर पड़ती निगाहों की दास्तान’ शीर्षक शोध-कार्य भी किया है।