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महादेवी वर्मा

1907 - 1987 | फ़र्रूख़ाबाद, उत्तर प्रदेश

छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। कविता के साथ-साथ अपने रेखाचित्रों के लिए भी प्रसिद्ध। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। कविता के साथ-साथ अपने रेखाचित्रों के लिए भी प्रसिद्ध। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

महादेवी वर्मा का परिचय

उपनाम : 'महादेवी वर्मा'

मूल नाम : महादेवी वर्मा

जन्म : 26/03/1907 | फ़र्रूख़ाबाद, उत्तर प्रदेश

निधन : 11/09/1987 | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

‘आधुनिक युग की मीरा’ कही जाने वाली महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में होली के दिन 1907 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई और एम. ए. उन्होंने संस्कृत में प्रयाग विश्वविद्यालय से किया। बचपन से ही चित्रकला, संगीतकला और काव्यकला की ओर उन्मुख महादेवी विद्यार्थी जीवन से ही काव्य प्रतिष्ठा पाने लगी थीं। वह बाद के वर्षों में लंबे समय तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रहीं। वह इलाहाबाद से प्रकाशित ‘चाँद’ मासिक पत्रिका की संपादिका थीं और प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ नामक संस्था की स्थापना की थी।  

‘निराला वैशिष्ट्य’ की स्वामिनी महादेवी वर्मा छायावाद की चौथी स्तंभ भी कही जाती हैं। प्रणय एवं वेदनानुभूति, जड़ चेतन का एकात्म्य भाव, सौंदर्यानुभूति, मूल्य चेतना, रहस्यात्मकता उनकी मुख्य काव्य-वस्तु है। वह प्रधानतः गीति कवयित्री हैं जिनके काव्य में परंपरा और मौलिकता का अद्वितीय समन्वय नज़र आता है। शब्द-निरूपण, वर्ण-विन्यास, नाद-सौंदर्य और उक्ति-सौंदर्य-सभी दृष्टियों से वह भाषा पर सहज अधिकार रखती हैं। उन्होंने अपने काव्य में प्रतीकात्मक संकेत-भाषा का प्रयोग किया है जिसमें छायावादी प्रतीकों के साथ ही मौलिक प्रतीकों का भी कुशल प्रयोग हुआ है। उनका वर्ण-परिज्ञान उनके बिंब-विधान की प्रमुख विशेषता है। चाक्षुष, श्रव्य, स्पर्शिक बिंबों में उनकी विशेष रुचि रही है। अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत के साम्य गुणों का चित्रण वह बख़ूबी करती हैं। रूपक, अन्योक्ति, समासोक्ति तथा उपमा उनके प्रिय अलंकार हैं। उनके संबंध में कहा गया है कि छायावाद ने उन्हें जन्म दिया था और उन्होंने छायावाद को जीवन दिया। 

उन्होंने कविताओं के साथ ही रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध, डायरी आदि गद्य विधाओं में भी योगदान किया है। ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’, ‘साधिनी’, ‘प्रथम आयाम’, ‘सप्तपर्णा’, ‘अग्निरेखा’ उनके काव्य-संग्रह हैं। रेखाचित्रों का संकलन ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ में किया गया है। ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘विवेचनात्मक गद्य’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध’, ‘संकल्पिता’, ‘हिमालय’, ‘क्षणदा’ उनके निबंधों का संकलन है। 

वह साहित्य अकादेमी की सदस्यता प्राप्त करने वाली पहली लेखिका थीं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया। उन्हें यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके सम्मान में जयशंकर प्रसाद के साथ युगल डाक टिकट भी जारी किया।  

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