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लीलाधर जगूड़ी

1940 | टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड

समादृत कवि। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत कवि। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

लीलाधर जगूड़ी का परिचय

मूल नाम : लीलाधर जगूड़ी

जन्म : 01/07/1940 | टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड

समकालीन कविता के समादृत कवि लीलाधर जगूड़ी का जन्म 1 जुलाई 1944 को टिहरी-गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। ग्यारह वर्ष की आयु में घर से भाग गए थे और आजीविका संघर्ष में रत रहे। फ़ौज में सिपाही की नौकरी भी की। बाद में उत्तर प्रदेश की सूचना सेवा में चयन हुआ जहाँ सरकारी पत्रिकाओं का संपादन किया। सेवानिवृत्ति के बाद उत्तराखंड के प्रथम सूचना सलाहकार और उत्तराखंड संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद के पहले उपाध्यक्ष बने। केंद्रीय साहित्य अकादेमी के सामान्य सभा से संबद्धता रही है।

ओम निश्चल के शब्दों में—‘‘...लीलाधर जगूड़ी उन कवियों में आते हैं, जिन्होंने अनुभव और भाषा के बीच कविता को जीवित रखा है। अनुभव के आकाश में उड़ान भरने वाले वह हिंदी के एक मात्र ऐसे कवि हैं जिनके यहाँ शब्द किसी कौतुक या क्रीड़ा का उपक्रम नहीं हैं, वे एक सार्थक सर्जनात्मकता की कोख से जन्म लेते हैं।’’ कविता में नवीनता को उनके ध्येय की तरह लक्षित किया जाता है और यह नवीनता अनुभव, भाषा, संवेदना, कथ्य—सभी में नज़र आती है। यह भी कहा गया है कि समकालीन कवियों में भाषा के सर्वाधिक नए प्रयोग उनके घर ही पाए जाते हैं।

‘शंखमुखी शिखरों पर’ (1964), ‘नाटक जारी है’ (1972), ‘इस यात्रा में’ (1974), ‘रात अब भी मौजूद है’ (1976), ‘बची हुई पृथ्वी’ (1977), ‘घबराए हुए शब्द’(1981), ‘भय भी शक्ति देता है’ (1991), ‘अनुभव के आकाश में चाँद’(1994), ‘महाकाव्य के बिना’ (1995), ‘ईश्वर की अध्यक्षता में’ (1999), ‘जितने लोग उतने प्रेम’ (2013), ‘ख़बर का मुँह विज्ञापन से ढका है’ (2014) उनके काव्य-संग्रह हैं। गद्य में उनका नाटक ‘पाँच बेटे’ और निबंध-संग्रह ‘रचना प्रक्रिया से जूझते हुए’ प्रकाशित है। 

उन्हें ‘अनुभव के आकाश में चाँद’ कविता-संग्रह के लिए 1997 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने 2004 में उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया है। वर्ष 2018 में ‘जितने लोग उतने प्रेम’ कविता-संग्रह के लिए उन्हें वर्ष 2018 के व्यास सम्मान से नवाज़ा गया है। 

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