कविराजा बाँकीदास के दोहे
सूर न पूछे टीपणौ, सुकन न देखै सूर।
मरणां नू मंगळ गिणे, समर चढे मुख नूर॥
शूरवीर ज्योतिषी के पास जाकर युद्ध के लिए मुहूर्त नहीं पूछता, शूर शकुन नहीं देखता। वह मरने में ही मंगल समझता है और युद्ध में उनके मुँह पर तेज चमक
आता है।
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तीहाँ देस विदेस सम, सीहाँ किसा उतन्न।
सीह जिकै वन संचरै, को सीहाँरौ वन्न॥
सिंहों के लिये देश-विदेश बराबर हैं। उनका वतन कैसा? सिंह जिन वनों मे पहुँच जाते हैं वे वन ही उनके अपने स्वदेश हो जाते हैं।
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चमर हुळे नह सीह सिरै, छत्र न धारे सीह।
हांथळ रा बळ सू हुवौ, ओ मृगराज अबीह॥
सिंह के सिर पर चँवर नहीं डुलाये जाते और सिंह कभी मस्तक पर छत्र धारण नहीं करता। वह तो अपने पंजे के बल से ही निर्भय हुआ है।
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कापुरसाँ फिट कायराँ, जीवण लालच ज्ययाँह।
अरि देखै आराण मै, तृण मुख माँझळ त्याँह॥
कुपुरुष कायरों को धिक्कार है, जो जीने के लोभ से शत्रु को युद्ध में देखते ही मुँह में तिनका ले लेते हैं।
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सूरातन सूराँ चढ़े, सत सतियाँसम दोय।
आडी धारा ऊतरै, गणे अनळ नू तोय॥
शूरवीरों में वीरत्व चढ़ता है और सतियो में सतीत्व। ये दोनों एक समान है। शूरवीर
तलवार से कटते हैं और सती अग्नि को जल समझती है।
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बाघ करें नह कोट बन, बाघ करे नह बाड़।
बाघा रा बघवार सूं, झिले अंगजी झाड़॥
सिंह वन के चारों ओर न तो कोट बनाता है और न काँटों की दीवार लगाता है। सिंहों के शरीर की गंध ही से छोटे-छोटे वृक्ष उन्नति के शिखर पर पहुँच जाते हैं।
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कायर घर आवण करै, पूछे ग्रह दुज पास।
सरग वास खारौ गिणे, सब दिन प्यारौ सास॥
कायर पुरुष वापस घर आने की सोचता है, वह ब्राह्मण से अपने ग्रह पूछता है। उसे सदैव अपने प्राण प्यारे लगते हैं और स्वर्गवास को वह बुरा समझता है।
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सखी अमीणौ साहिबो, निरभै काळो नाग।
सिर राखे मिण सामभ्रम, रीझैं सिंधू राग॥
हे सखी! मेरा प्रीतम निडर, काला साँप है जो अपने मस्तक पर स्वामिभक्ति-रूपी मणि को धारण करता है और सिंधु राग को सुन कर रीझता है।
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कृपण जतन धन रौ करै, कायर जीव जतन्न।
सूर जतन उण रौ करै, जिण रौ खाधौ अन्न॥
कंजूस अपने धन की रक्षा का यत्न करता है और कायर अपने प्राण की रक्षा का। लेकिन शूरवीर उसकी रक्षा का यत्न करता है जिसका अन्न उसने खाया है।
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नमसकार सूरां नरां, पूरा सतपुरसाँह।
भाग्थ गज थाटां भिडै, अडै भुजाँ उरसाँह॥
उन पूर्ण वीर सत्पुरुषों को नमस्कार है, जो युद्ध में हाथियों के समूह से जा भिडते हैं और जिनकी भुजाएँ आकाश से जा लगती हैं।
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सखी अमीणौ साहिबो, सूर धीर समरत्थ।
जुध मे वामण डड जिम, हेली बाधै हत्थ॥
हे सखी ! मेरा पति शूरवीर, धीर और समर्थ है। युद्ध में उसके हाथ वामनावतार (विष्णु) के दंड के समान बढ़ते हैं।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere